लेखक:
ममता कालिया
जन्म : 2 नवम्बर, 1940 को वृन्दावन में हुआ।
शिक्षा : नागपुर, मुंबई, पुणे, इन्दौर और दिल्ली के विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में हुई। आपने अंग्रेजी साहित्य से एम.ए. किया। गतिविधियाँ : ममता कालिया सन् 1960 से निरन्तर लिख रही हैं। कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक के अलावा इन्होंने समकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति पर लेख, स्तम्भ आदि भी विपुल मात्रा में लिखे हैं। ममता कालिया की कहानियाँ व उपन्यास देश और विदेशों के कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। वे अंग्रेजी में भी कविता लिखती हैं। नारी मनोविज्ञान, सामाजिक विसंगतियों का बोध और उनसे उबरने की बेचैनी इनके लेखन की पहचान है। प्रकाशित कृतियाँ : छुटकारा, सीट नम्बर प्रतिदिन, बोलने वाली औरत, चर्चित कहानियाँ। उपन्यास : बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स। पुरस्कार : हिन्दी साहित्य परिषद्, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा रमणिका फाउण्डेशन द्वारा पुरस्कृत। |
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थिएटर रोड के कौवेममता कालिया
मूल्य: Rs. 150 वक़्त बदलता है, वक़्त के साथ समाज और सामाजिक मान्यताएं भी बदल जाती हैं। इसी बदलते समाज, मान्यताओं और बदल गए जीवन-मूल्यों पर चुभता व्यंग्य... आगे... |
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थोड़ा सा प्रगतिशीलममता कालिया
मूल्य: Rs. 250 इन कहानियों में स्त्री विमर्श समानता का स्वप्न लेकर उपस्थित है आगे... |
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दुक्खम सुक्खमममता कालिया
मूल्य: Rs. 270 यशस्वी कथाकार ममता कालिया का उपन्यास ‘दुक्खम सुक्खम’ दादी विद्यावती और पौत्री मनीषा के मध्य समाहित/सक्रिय समय एवं समाज की अनूठी गाथा है आगे... |
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दौड़ममता कालिया
मूल्य: Rs. 200
आर्थिक उदारीकरण ने बाजार और बाजारवादी व्यवस्था पर आधारित उपन्यास.. आगे... |
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नयी सदी की पहचानममता कालिया
मूल्य: Rs. 175 यह संकलन समकालीन लेखन के तेवर और तापमान को भली-भाँति दर्शाता है.... आगे... |
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नरक दर नरकममता कालिया
मूल्य: Rs. 140 एक श्रेष्ठ उपन्यास.... आगे... |
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निर्मोहीममता कालिया
मूल्य: Rs. 250
ममता कालिया की पाँच कहानियों का संग्रह आगे... |
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प्रतिनिधि कहानियाँ: ममता कालियाममता कालिया
मूल्य: Rs. 60 हिन्दी की सुपरिचित लेखिका ममता कालिया की कहानियों के इस संग्रह में शिक्षित मध्यवर्गीय नारी की आशाओं, आकांक्षाओं, संघर्षों और स्वप्नों का यथार्थपरक अंकन हुआ है। आगे... |
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बेघरममता कालिया
मूल्य: Rs. 200 ममता कालिया का एक समकालीन उपन्यास आगे... |
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बोलनेवाली औरतममता कालिया
मूल्य: Rs. 200
ममता कलिया ने इन कहानियों को महिलावादी क्रोधी भंगिमा से नहीं रचा है, न ही इनमें औरतों के प्रति अबोध आकुलता है। आगे... |