लोगों की राय

नई पुस्तकें >> मन की गीता

मन की गीता

महेश चन्दर सिंह अधिकारी

प्रकाशक : अनुराधा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 10125
आईएसबीएन :9789385083907

Like this Hindi book 0

भगवान श्रीकृष्ण ने हनुमान जी से पूछा कि हे कपि श्रेष्ठ क्या तुमने भी गीता सुनी ? तब कपि श्रेष्ठ ने आनन्द मग्न हो उत्तर दिया कि - हे प्रभो ! भेद खुलने के संदेह से मैं नीचे नहीं आया। तब भगवान कृष्ण ने हनुमान जी को आदेश दिया कि तुम अब मन की गीता बनाओ।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मन का सहस्त्र नाम बनाया, जब भगवान कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे तब हनुमान जी अर्जुन के रथ में वजा के रूप में विराजमान थे और वे गीता को बड़े धयान से सुन रहे थे। गीता का उपदेश पूरा होने पर हनुमान जी ने भगवान श्री कृष्ण को आध्यात्मिक दृष्टि से साधुवाद दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने हनुमान जी से पूछा कि हे कपि श्रेष्ठ क्या तुमने भी गीता सुनी ? तब कपि श्रेष्ठ ने आनन्द मग्न हो उत्तर दिया कि - हे प्रभो ! भेद खुलने के संदेह से मैं नीचे नहीं आया। तब भगवान कृष्ण ने हनुमान जी को आदेश दिया कि तुम अब मन की गीता बनाओ। तब हनुमान जी ने भगवान के आदेशानुसार 'मन की गीता' अर्थात् सच्चिदानन्द ब्रह्म की स्तुति करना आरम्भ किया। मन की गीता में भगवान के समस्त रूप, गुण और कर्मों का वर्णन है जो समस्त पुराणों से चुन-चुन कर नाम लिए गये हैं, उन नामों से भगवान के गुण, कर्म और रूपों का ज्ञान होता है। अत % मैं एक दीन-हीन व्यक्ति द्वारा उद्धत स्तुति का उपहास न मानकर समस्त नर-नारी प्रभु के गुणों का गुणगान करने की चेष्टा करें और अपने कलि के पापों का नाश करें। यह स्त्रोत समस्त सज्जनों को ब्राह्मणों को विद्या, क्षत्रिय को बल-बुद्धि एवं वैश्यों को धन-धान्य एवं शूद्रों को सुख प्रदान करने वाला है, नारियों को पति और पुत्र का सुख तथा दीन-दुखियों को कष्ट रहित करने वाला है। अत % समस्त सज्जन श्रद्धा और भक्ति भाव से इस स्तुति का पाठ अवश्य करें। श्रद्धा ही सर्वोपरि है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book