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गीता प्रेस, गोरखपुर >> चोखी कहानियाँ

चोखी कहानियाँ

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1028
आईएसबीएन :81-293-0418-x

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प्रस्तुत है चोखी कहानियाँ....

Chokhi Kahaniyan a hindi book by Gitapress - चोखी कहानियाँ - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निवेदन

छोटे बालक-बालिकाओं के लिये ऐसे कहानियाँ होनी चाहिये, जो छोटी, रोचक, सरल भाषा में लिखी हुई हों, जिनके पढ़ने से मनोरञ्जन के साथ ही विविध विषयों की जानकारी बढ़ती हो तथा जीवन को पवित्र बनाने के लिये प्रेरणा मिलती हो। इसी निमित्त से इन कहानियों का निर्माण और प्रकाशन हो रहा है। इस छोटी-सी पुस्तिक में 32 कहानियाँ हैं। इससे बालकों को लाभ पहुँचा तो कहानियों की और भी पुस्तकें प्रकाशित की जा सकती हैं।

-प्रकाशक



   श्रीपरमात्मने नमः
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चोखी कहानियाँ
भगवान् का भरोसा



जाड़े का दिन था और शाम हो गयी थी। आसमान में बादल छाये थे। एक नीम के पेड़ पर बहुत-से कौए बैठे थे। वे सब बार-बार काँव-काँव कर रहे थे और एक-दूसरे से झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक छोटी मैना आयी और उसी नीम के पेड़ की एक डाल पर बैठ गयी। मैना को देखते ही कई कौए उस पर टूट पड़े।

बेचारी मैना ने कहा—‘बादल बहुत हैं, इसलिए आज जल्दी अँधेरा हो गया है। मैं अपना घोसला भूल गयी हूँ। मुझे आज रात यहाँ रहने दो।’
कौओं ने कहा—‘नहीं, यह हमारा पेड़ है। तू यहाँ से भाग जा।’

मैना बोली—‘पेड़ तो सब भगवान् के हैं। इस सर्दी में यदि वर्षा हुई ओले पड़े तो भगवान् ही हम लोगों के प्राण बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूँ, तुम्हारी बहिन हूँ, मुझ पर तुम लोग दया करो और मुझे भी यहाँ बैठने दो।’
कौओं ने कहा—‘हमें तेरी-जैसी बहिन नहीं चाहिये। तू बहुत भगवान् का नाम लेती है तो भगवान् के भरोसे यहाँ से चली क्यों नहीं जाती ? तू नहीं जायगी तो हम सब तुझे मारेंगे।’

कौए तो झगड़ालू होते ही हैं, वे शाम को जब पेड़ पर बैठने लगते हैं तब आपस में झगड़ा किये बिना उनसे रहा नहीं जाता। वे एक-दूसरे को मारते हैं और काँव-काँव करके झगड़ते हैं। कौन कौआ किस टहनी पर रात को बैठेगा यह कोई झटपट तै नहीं हो जाता। उनमें बार-बार लड़ाई होती है, फिर किसी दूसरी चिड़िया को वे अपने पेड़ पर तो बैठने ही कैसे दे सकते थे। आपस की लड़ाई छोड़कर वे मैना को मारने दौड़े।

कौओं को काँव-काँव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेचारी मैना वहाँ से उड़ गयी और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ पर बैठ गयी।

रात को आँधी आयी। बादल गरजे और बड़े-बड़े ओले पड़ने लगे। बड़े आलू-जैसे ओले तड़-तड़, भड़-भड़ बंदूक की गोली-जैसे पड़ रहे थे। कौए काँव-काँव करते चिल्लाये; इधर-से-उधर थोड़ा-बहुत उड़े; परंतु ओले की मार से सब-के-सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। बहुत-से कौए मर गये।

मैना जिस आम पर बैठी थी, उसकी एक मोटी डाल आँधी में टूट गयी। डाल भीतर से सड़ गयी थी और पोली हो गयी थी। डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खोंड़र हो गया। छोटी मैना उसमें घुस गयी। उसे एक भी ओला नहीं लगा।

सबेरा हुआ, दो घड़ी चढ़ने पर चमकीली धूप निकली। मैना खोंड़र में से निकली, पंख फैलाकर चहककर उसने भगवान् को प्रणाम किया और वह उड़ी।
पृथ्वी पर ओले से घायल पड़े हुए कौए ने मैना को उड़ते देखकर बड़े कष्ट से कहा—‘मैना बहिन ! तुम कहाँ रही ? तुमको ओलों की मार से किसने बचाया ?’

मैना बोली—‘मैं आम के पेड़ पर अकेली बैठी थी और भगवान् की प्रार्थना करती थी। दुःख में पड़े हुए असहाय जीवको भगवान् के सिवा और कौन बचा सकता है।’
लेकिन भगवान् केवल ओले से ही नहीं बचाते और केवल मैना को ही नहीं बचाते। जो भी भगवान् पर भरोसा करता है और भगवान् को याद करता है, उसे भगवान् सभी आपत्ति-विपत्ति में सहायता देते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।


अधम बालक


वर्षा के दिन थे। तालाब लबालब भरा हुआ था। मेंढक किनारे पर बैठे एक स्वर में टर्र-टर्र कर रहे थे। कुछ लड़के स्नान करने लगे। वे पानी में कूदे और तैरने लगे। उनमें से एक ने पत्थर उठाया और एक मेंढक को दे मारा। मेंढक कूदकर पानी में चला गया। मेंढक का कूदना देखकर लड़कों को बड़ा मजा आया। वह बार-बार मेंढक को पत्थर मारने और उन्हें कूदते देखकर हँसने लगा।

पत्थर लगने से बेचारे मेंढक को चोट लगती थी। उनको मनुष्य की भाषा बोलनी आती तो अवश्य वे लड़के से प्रार्थना करते और शायद उसे गाली भी देते। लेकिन बेचारे क्या करें। चोट लगती थी और प्राण बचाने के लिये वे पानी में कूद जाते थे। अपनी पीड़ा को सह लेने के सिवा उनके पास कोई उपाय ही नहीं था। लड़का नहीं जानता था कि इस प्रकार खेल में मेढकों को पत्थर मारना या कीड़े-मकोड़े, पतिंगे आदि को तंग करना अथवा उनकी जान ले लेना बहुत बड़ा पाप है। जो पाप करता है, उसे बहुत दुःख भोगना पड़ता है और मरने के बाद यमराज के दूत पकड़कर नरक में ले जाते हैं। वहाँ उसे बड़े-बड़े कष्ट भोगने पड़ते हैं। लड़के को तो मेंढकों को पत्थर मारना खेल जान पड़ता था। वह उन्हें बार-बार पत्थर मारता ही जाता था।

‘इसे पकड़ ले चलो।’ लड़के ने पीछे से जो यह बात सुनी तो मुड़कर देखने लगा कि तीन यमदूत खड़े हैं। काले-काले यमदूत। लाल-लाल आँखें। बड़े-बड़े दाँत। टेढ़ी नाक। हाथों में मोटे-मोटे डंडे और रस्सी। लड़का उन्हें देखते ही डर गया। उसने साथियों को पुकारा, पर वहाँ कोई नहीं था। वह खेलने में लग गया था और लड़के स्नान करके चले गये थे।

‘पकड़ लो इसे !’ एक यमदूत ने दूसरे से कहा।
‘यह तो गुबरैल-जैसा घिनौ    ना है।’ दूसरे यमदूत ने मुख बनाकर पकड़ना अस्वीकार किया।
‘मैं इसे नहीं छू सकता। यह बड़ा नीच है। मेरे हाथ मैले हो जायँगे।’ तीसरे ने कहा।

 

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