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सांस्कृतिक >> रावी लिखता है

रावी लिखता है

अब्दुल बिस्मिल्लाह

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10299
आईएसबीएन :9788126719556

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उपन्यास में एक निम्न मध्यवर्गीय लेकिन कर्मशील मुस्लिम परिवार की कई पीढ़ियों की जीवनगाथा का रोचक ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पाश्चात्य और भारतीय सभ्यता-संस्कारों के बीच पुल बनाता, एक संवेदनशील तथा शालीन मुस्लिम परिवार का मार्मिक दस्तावेज। लेखक ने वर्तमान के माध्यम से अतीत के कथाचित्र का सजीव चित्रण किया है और साहित्य की एक सशक्त प्राविधि ‘फैंटेसी’ का बखूबी प्रयोग करते हुए उपन्यास को एक नए सौंदर्य शास्त्र से सृजित किया है। उपन्यास में एक निम्न मध्यवर्गीय लेकिन कर्मशील मुस्लिम परिवार की कई पीढ़ियों की जीवनगाथा का रोचक ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है। उनकी संस्कृति व् सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ यह उपन्यास ग्रामीण जीवन की गहनता, प्रकृति प्रेम, खेत-खलिहानों के दृश्यों का भी सफ़र करता है। भारतीयता की जड़े कितनी सशक्त, गहरी और शाश्वत हैं और उनका प्रभाव कितना दूरगामी है, यह उपन्यास इस सच्चाई को स्थापित करता है। पाश्चात्य संस्कृति में पीला बच्चे जिन्हें देशी रहन-सहन, खानपान, भाषा और अपने दुर्व्यवस्था से अजीब-सा परहेज था, उनका सहज रूपांतरण एक खूबसूरत प्रक्रिया है। लेखक ने नए और पुराने जीवन और समाज को बिना किसी टकराहट के एक श्रृंखला में बांधने और सामंजस्य बनाने का एक सार्थक और अनिवार्य कार्य किया है जो आज के समय की आवश्यकता भी है। इस उपन्यास में आज की कंप्यूटर, मैसेज, ई-मेल की इलेक्ट्रॉनिक दुनिया और तेज रफ़्तार भौतिक जीवन के बीच संबंधो, रिश्तों और संवेदनाओं को कैसे जीवित रखा जा सकता है, इन पहलुओं को भी सरल भाषा में संजोया गया है। भाषा की रवानगी कृति की पठनीयता को बड़ाती है और पाठक के अंतर्मन से एक रिश्ता भी बनाती है।

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