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रामलीला की उत्पत्ति तथा विकास

मोहन राम यादव

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10300
आईएसबीएन :9789352211685

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भक्ति-संप्रदाय में वे भगवान् के अवतार माने जाते हैं। अतः उनके चारित्रिक गुण एवं जीवन का ज्ञान बड़े उत्साह से प्राप्त किया जाता है। रामलीला का आयोजन भारत में तो अत्यन्त प्राचीन काल से होता ही रहा है, विदेशों में भी सहस्त्रो वर्षों से बसे भारतीय इसे अक्षुण्ण बनाये हुए हैं। इस प्रकार रामलीला ने विदेशों में स्थापित भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध को ऐसा दृढ बना दिया है कि सहस्त्रों वर्षों तक निरंतर प्रयत्न करते रहने पर भी काल उसे नष्ट करने में समर्थ नहीं हो सका है। इसमें सांस्कृतिक जीवन कि ऐसी महत्तपूर्ण झाँकी मिलती है जो इस युग में भी समस्त क्षेत्रों में मानव का पथ-प्रदर्शन करने में सर्वथा समर्थ है।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

राम के जवान में भारतीय आदर्शों के चरम विकास के दर्शन होते हैं। भक्ति-संप्रदाय में वे भगवान् के अवतार माने जाते हैं। अतः उनके चारित्रिक गुण एवं जीवन का ज्ञान बड़े उत्साह से प्राप्त किया जाता है। रामलीला का आयोजन भारत में तो अत्यन्त प्राचीन काल से होता ही रहा है, विदेशों में भी सहस्त्रो वर्षों से बसे भारतीय इसे अक्षुण्ण बनाये हुए हैं। इस प्रकार रामलीला ने विदेशों में स्थापित भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध को ऐसा दृढ बना दिया है कि सहस्त्रों वर्षों तक निरंतर प्रयत्न करते रहने पर भी काल उसे नष्ट करने में समर्थ नहीं हो सका है। इसमें सांस्कृतिक जीवन कि ऐसी महत्तपूर्ण झाँकी मिलती है जो इस युग में भी समस्त क्षेत्रों में मानव का पथ-प्रदर्शन करने में सर्वथा समर्थ है। देश के कोने-कोने में रामलीला का आयोजन कि चर्चा अनेक धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथों में हुई। किन्तु किसी में उसका सम्यक निरूपण प्राप्त नहीं होता। रामलीला का आयोजन प्रायः भक्ति-साधना के रूप में होता रहा हैं। अतएवं भौतिकता से दूर रहनेवाले साधू-महात्मा इसके विश्लेष्णात्मक इतिहास को धर्म-विरूद्ध समझ इससे दूर ही रहे। उन्हें तो रामलीला के दर्शन मात्र से प्रयोजन था। गोस्वामी जी राम का व्यापक प्रचार करना चाहते थे। उनके मत से तात्कालिक व्याधियों का सबसे बड़ा उपचार रामचरित था। जहाँ उन्होंने प्रचार के अनेक साधन अपनाये वहां मानस की रामलीला का आयोजन धूम-धाम से किया। रामलीला प्रचार का बड़ा उपयुक्त साधन हैं। कथा-वार्ता, मंदिर या अखाड़ों में तो वह व्यक्ति जाता है जिसमे उस प्रकार कि प्रवृत्ति रहती है। किन्तु रामलीला के कारण ऐसे जन भी उनकी ओर आकृष्ट होते हैं जिनकी सम्भावना नहीं कि जाती। इसमें मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी मिलती हैं। प्रत्यक्ष दर्शन का प्रभाव श्रव्यकाव्य या उपदेश कि अपेक्षा अधिक तथा स्थायी होता है। गोस्वामी जी के पूर्व से वाल्मीकीय रामायण के अनुसार रामलीला होती थी। उसके प्रति जनता में आस्था भी थी। वाल्मीकीय रामायण के निर्माण काल कि सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थिति तत्कालीन समय से भिन्न थी। वाल्मीकीय रामायण के आधार पर होनेवाली रामलीला में धार्मिक भावना कि प्रधानता थी। वह मुसलमानी शासन तथा इस्लाम धर्म के कारण उस युग में उपादेय सिद्ध नहीं हो सकती थी। गोस्वामी जी उसको नया तथा उपयोगी स्वरुप प्रदान करना चाहते थे। यह रामलीला का आन्दोलन था। रामलीला के आयोजन से जनता में नव चेतना जग पड़ी। उनके सामने एक उदाहरण प्रत्यक्ष रूप में आ गया। राम कि भांति विपत्तियों में धैर्य रखने तथा पराक्रम द्वारा कार्य करने से राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश हो सकता है। भारतीय संस्कृति का मूर्त रूप पाकर जनता ने अपने हृदय का परिष्कार किया तथा चरित्र सुधरा। गोस्वामी जी कि रामलीला कि लहर सारे उत्तरी भारत में फैलती हुई दक्षिण में भी जा पहुंची। सारा देश राममय हो गया। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा अटक से लेकर कटक तक रामलीला का आन्दोलन व्याप्त हो गया। इस क्षेत्र में गोस्वामी जी को अपूर्व सफलता मिली।

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