उपन्यास >> समर शेष है समर शेष हैअब्दुल बिस्मिल्लाह
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समर शेष है अब्दुल बिस्मिल्लाह का आत्म-कथात्मक उपन्यास है। कथा-नाटक है , सात-आठ साल का मात्रिविहीन एक बच्चा, जो कि पिता के साथ-साथ स्वयं भी भारी विषमता से ग्रसित है। लेकिन पिता का असामयिक निधन तो उसे जैसे एक विकत जीवन-संग्राम में अकेला छोड़ जाता है। पिता के सहारे उसने जिस सभ्य और सुशिक्षित जीवन के सपने देखे थे, वे उसे एकाएक ढहते हुए दिखाई दिए।
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