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गीता प्रेस, गोरखपुर >> रहस्यमय प्रवचन

रहस्यमय प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1037
आईएसबीएन :81-293-0582-8

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इस पुस्तक में भगवान के रहस्यमय प्रवचनों का उल्लेख है।

Rahasyamay Pravachan -A Hindi Book by Jaidayal Goyandaka -रहस्यमय प्रवचन -जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निवेदन

वर्तमान में मानव–जीवन भौतिक सुख-समृद्धि की ओर विशेष आकर्षित एवं आँख मूँदकर अग्रसरित होने के कारण अशान्त, दिग्भ्रमित, लक्ष्य से च्युत एवं किंकर्तव्यविमूढ़ है। परिणामतः आज मनुष्य आत्मकल्याण अथवा परमात्म-प्राप्ति के अपने वास्तविक लक्ष्य से भटककर भौतिक उन्नति को ही अपना एकमात्र प्राप्तव्य मान परमात्मा की अमूल्य देन-इस मानव-देह का वह दुरुपयोग ही नहीं, अपितु अपने लिये बड़े भारी दुःखों और अनजाने में ही अन्तहीन यातनाओं का सृजन कर रहा है। एतदर्थ इस विषम, दुःखद और महापुरुषों का मार्ग-दर्शन ही हमारे (हम सबके) लिये एकमात्र विकल्प तथा कल्याणकारी उपाय है।

प्रस्तुत पुस्तक-‘रहस्यमय प्रवचन’ तत्त्वज्ञ मनीषी तथा आध्यात्मिक चेतना-पुरुष एवं (कल्याण के माध्यम से अपने आध्यात्मिक विचारपूर्ण लेखों द्वारा) आप सबके सुपरिचित ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका के कतिपय अप्रकाशित प्रेरणाप्रद पुराने प्रवचनों का संकलन है, जिन्हें लिपिबद्ध करके लेखरूप में छापा गया है। इसके लिये बहुत समय से अनेक श्रद्धालु तथा प्रेमीजनों का विशेष प्रेमाग्रह था। भगवत्प्रेरणानुसार इसे अब ‘सर्वजनहिताय’-आप सबकी सेवा में प्रस्तुत करते हुए हम सात्त्विक आनन्द एवं कृतकार्यता अनुभव कर रहे हैं।

यह लेख-संग्रह जीवन्मुक्त मनीषी द्वारा अभिव्यक्त अनेक लौकिक तथा पारलौकिक (आध्यात्मिक) विषयों पर सरल, सुबोध भाषा में शास्त्रानुमोदित, स्वानुभूत उन विचारों और सिद्धान्तों का दिग्दर्शन है, जिसे उन्होंने समय-समय पर जनहितार्थ अपने प्रवचनों के माध्यम से उद्घाटित किया था। हमें विश्वास है कि सभी श्रद्धालु, ईश्वरविश्वासी, आस्तिक महानुभावों एवं कल्याणकारी सत्पुरुषों के लिये इसकी प्रेरणाप्रद बातें उपयोगी मार्ग-दर्शक सिद्ध हो सकती हैं। अतएव सभी से हमारा यह सादर विनम्र अनुरोध है कि वे इसे  एक बार अवश्य पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करके सद्भावों के प्रचार-प्रसार में सहायक बनें। अधिकाधिक लोगों को विशेष लाभ उठाकर पुस्तक की उपयोगिता अवश्य सिद्ध करनी चाहिये।

-प्रकाशक

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