लोगों की राय

जैन साहित्य >> समराइच्चकहा (प्राकृत गद्य, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद) भाग 1

समराइच्चकहा (प्राकृत गद्य, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद) भाग 1

हरिभद्र सूरि

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1993
पृष्ठ :456
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10481
आईएसबीएन :0000000000000

Like this Hindi book 0

प्रचलित भाषा में इसे नायक और प्रतिनायक के बीच जन्म-जन्मान्तरों के जीवन-संघर्षों की कथा का वर्णन करने वाला प्राकृत का एक महान उपन्यास कहा जा सकता है.

आचार्य हरिभद्र सूरि की, प्राकृत गद्य भाषा में निबद्ध एक आख्यानात्मक कृति है. प्रचलित भाषा में इसे नायक और प्रतिनायक के बीच जन्म-जन्मान्तरों के जीवन-संघर्षों की कथा का वर्णन करने वाला प्राकृत का एक महान उपन्यास कहा जा सकता है. मूल कथा के रूप में इसमें उज्जयिन्नी के राजा समरादित्य और प्रतिनायक अग्निशर्मा के नौ जन्मों (भवों) का वर्णन है. एक-एक जन्म की कथा एक-एक परिच्छेद में समाप्त होने से इसमें नौ भव या परिच्छेद हैं.

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book