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रिट्ठणेमिचरिउ (यादवकाण्ड) (अपभ्रंश, हिन्दी)

देवेन्द्र कुमार जैन

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10504
आईएसबीएन :0000000000000

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स्वयंभूदेव (आठवीं शताब्दी) अपभ्रंश के आदिकवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इनकी दो प्रमुख रचनाएँ हैं--'पउमचरिउ' और 'रिट्ठाणेमीचरिउ' जो क्रमशः रामकथा तथा कृष्णकथापरक हैं.

स्वयंभूदेव (आठवीं शताब्दी) अपभ्रंश के आदिकवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इनकी दो प्रमुख रचनाएँ हैं--'पउमचरिउ' और 'रिट्ठाणेमीचरिउ' जो क्रमशः रामकथा तथा कृष्णकथापरक हैं. प्रस्तुत कृति में मात्र यादव-काण्ड (१३ संधि पर्यन्त) सम्मिलित है जिसमें वसुदेवचरित, कृष्ण-जन्म, कृष्ण की बाल-लीलाएँ, बलरामचरित, कृष्ण द्वारा कंस-जरासंध आदि अनेक दुष्टों का वध, रुक्मिणी-परिणय, २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्म और अन्त में रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न की लीलाओं का विशेष रूप से चित्रण है. इस कृति के हिन्दी अनुवादक-सम्पादक हैं स्व. डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन.

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