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भारतीय जीवन और दर्शन >> कर्णानंद-प्रभुपाद कृष्णचन्द्र गोस्वामी प्रणीत

कर्णानंद-प्रभुपाद कृष्णचन्द्र गोस्वामी प्रणीत

हितानंद गोस्वामी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11064
आईएसबीएन :8120821211

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भक्ति साहित्य में परमात्मा को रस कहा गया है। राधामाधव पर रचित गम्भीर-मधुर-प्रसन्न शैली में रचित उत्कृष्ट काव्य

कर्णानन्दः प्रभुपाद श्रीकृष्णचन्द्र गोस्वामि-प्रणीतः । हितानन्द गोस्वामीतैत्तिरीय श्रुति में परतत्त्व को रस कहा गया है। राधामाधव इस रस के मूर्त एवं उपासनीय रूप हैं। राधाकृष्णात्मक युगल की उपासना करने वाले सभी वैष्णव सम्प्रदायों में आराध्य तत्व के रूप में श्रीकृष्ण ही प्रतिष्ठित हैं। श्रीराधा की स्वीकृति उनके सर्वश्रेष्ठ उपासक एवं प्रेमास्पद के रूप में की गई है। राधावल्लभ सम्प्रदाय किंवा हित-धर्म के प्रवर्तक श्रीमन्महाप्रभु हितहरिवंश चन्द्र गोस्वामिपाद ने रस की बंकिमता को एक विलक्षण आयाम प्रदान करते हुए राधा-रति किम्वा राधा-प्राधान्य का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। कर्णानन्द के प्रणेता प्रभुपाद श्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी का जन्म इसी परम्परा में हुआ है। प्रस्तुत ग्रंथ उनके द्वारा रचित अनेक संस्कृत-भक्ति-काव्यों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है और प्रसन्न-गम्भीर-रचना-शैली, प्रेम-केलि का विशद और संयत वर्णन तथा ओजपूर्ण निष्ठा-कथन के कारण रसिक भक्तों का कण्ठाभरण बना हुआ है। संस्कृत के भक्ति-साहित्य की निस्सन्देह इस ग्रंथ के द्वारा श्रीवृद्धि हुई है।

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