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पुराण एवं उपनिषद् >> कूर्मपुराणः धर्म और दर्शन

कूर्मपुराणः धर्म और दर्शन

करुणा एस त्रिवेदी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1994
पृष्ठ :383
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11067
आईएसबीएन :9788120822450

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महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्त्व है।

वेदों में वर्णित विषयों का रहस्य पुराणों में रोचक उपाख्यानों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। पुराणों के परिज्ञान के बिना वेद, वेदांग एवं उपनिषदों का ज्ञाता भी ज्ञानवान नहीं माना गया है। इससे पुराण-सम्बन्धी ज्ञान की आवश्यकता और महत्ता परिलक्षित होती है।

महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्त्व है। सर्वप्रथम भगवान् विष्णु ने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था, पुनः भगवान् कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र-मन्थन के समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणों से कहा। तीसरी बार नैमिषारण्यके द्वादशवर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सैभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ। भगवान् कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम कूर्म पुराण विख्यात हुआ।

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