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गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्वेताश्वतरोपनिषद्

श्वेताश्वतरोपनिषद्

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1176
आईएसबीएन :00000

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श्वेताश्वतरोपनिष्द कृष्णयजुर्वेद के अन्तर्गत है। इसके वक्ता श्वेताश्वरतर ऋषि है। उन्होंने चतुर्थाश्रमियों को इस विद्या का उपदेश किया था। यह बात इस उपनिषद् के षष्ठ अध्याय के इक्कीसवें मन्त्र से विदित होती है।

Swetaswataropanishad-A Hindi Book by Gitapress - श्वेताश्वतरोपनिषद् गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

श्वेताश्वतरोपनिषद् कृष्णयजुर्वेद के अन्तर्गत है। इसके वक्ता श्वेताश्वरतर ऋषि हैं। उन्होंने चतुर्थाश्रमियों को इस विद्या का उपदेश किया था। यह बात इस उपनिषद् के षष्ठ अध्याय के इक्कीसवें मन्त्र से विदित होती है। इस उपनिषद् की विवेचना शैली बड़ी ही सुसम्बद्ध और भावपूर्ण है। इसमें साधन, साध्य और साधक और प्रतिपाद्य विषय के महत्त्व का बहुत स्पष्ट और मार्मिक भाषा में निरूपण किया गया है। इसमें प्रसंगानुसार सांख्य, योग, सगुण, निर्गुण, द्वैत, अद्वैत आदि कई प्रकार के सिद्धान्तों का उल्लेख हुआ है। अत: इसके वाक्यों के आधार से सांख्यवादी और द्वैतमतावलम्बियों ने भी बड़े समारोह से अपने सिद्धान्त का समर्थन किया है।

इसका आरम्भ जगत् के कारण की मीमांस से होता है। कुछ ब्रह्मवादी आपस में मिलकर इस विषय में विचार करते हैं कि जगत् का क्या कारण है ? हम कहाँ से उत्पन्न हुए ? किसके द्वारा हम जीवन धारण करते हैं ? कौन हमारा आधार है ? और किसकी प्रेरणा से हम दु:ख-सुख भोग करते हैं ? संसार के सम्पूर्ण दार्शनिक इन प्रश्नों को हल करने में ही व्यस्त रहे हैं। और उन्होंने अपनी-अपनी अनुभूति के आधार पर जो-जो निर्णय किये हैं वे ही विभिन्न दर्शनशास्त्र बीज है और यह जितनी तीव्र एवं निरपेक्ष होती है उतनी ही अधिक वास्तविकता के समीप ले जानेवाली होती है। अस्तु।

ऋषियों ने जगते के कारण की मीमांसा करते हुए काल-स्वभावादि लोकप्रसिद्ध कारणों पर विचार किया; किन्तु उनमें कोई भी उनकी जिज्ञासा शान्त करने में सफल न हुआ, उन्हें सभी अपूर्ण और आश्वस्त दिखायी दिये।


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