लोगों की राय

नई पुस्तकें >> मुस्लिम नवजागरण और अकबर इलाहाबादी का गाँधीनामा

मुस्लिम नवजागरण और अकबर इलाहाबादी का गाँधीनामा

वीरेन्द्र कुमार बरनवाल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :312
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12318
आईएसबीएन :9789388183529

Like this Hindi book 0

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हिन्दी में सम्भवतः यह पहली किताब है जिसमें अकबर इलाहाबादी के ‘गांधीनामा’ की पृष्ठभूमि में मुस्लिम नवजागरण, उसके विविध पक्षों तथा उसमें योगदान देनेवाले प्रमुख उन्नायकों के अवदान के बारे में इतनी बारीक चर्चा की गई है। इसमें शाह वली उल्लाह से लेकर मौलाना आज़ाद तक जैसे विख्यात युगपुरुषों के अवदान पर विचार तो किया ही गया है, इसके अलावा दो ऐसे विचारकों के योगदान पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है जिनके सम्बन्ध में बहुत कम लोग जानते हैं। मिर्जा अबू तालिब और मौलवी मुमताज़ अली दो ऐसे ही नाम हैं।

मिर्जा अबू तालिब को मुस्लिम जगत में आधुनिकता की पहली आहट निरूपित किया गया है और मौलवी मुमताज़ अली को पहले मुस्लिम नारीवादी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हिन्दू नवजागरण के प्रवर्तक राजा राममोहन राय और मुस्लिम नवजागरण के उन्नायक सर सैयद अहमद खाँ के नेतृत्व वाली अलग-अलग ये दोनों धाराएँ बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में महात्मा गांधी पर आकर एक बार एक हो जाती हैं। अकबर इलाहाबादी का ‘गांधीनामा’ दोनों पुनर्जागरणों के मिलन-बिन्दु का काव्य है। अकबर को व्यंग्य और विनोद के कवि के रूप में ही प्रायः सीमित कर दिया जाता है, उनकी कविता का प्रबल उपनिवेश विरोधी स्वर अकसर रेखांकित नहीं हो पाता। दरअसल गांधी जी की तरह वह भी पश्चिमी सभ्यता के अन्धाधुन्ध नकल और मशीनों के खिलाफ थे। इस तरह गांधी और अकबर के विचारों में अद्भुत समानता है। ‘गांधीनामा’ में यह स्वर बहुत अच्छी तरह से मुखर है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book