Samaan Nagrik Sanhita Chunautiya Aur Samadhan - Hindi book by - Anoop Baranwal - समान नागरिक संहिता चुनौतियाँ और समाधान - अनूप बरनवाल
लोगों की राय

विधि/कानून >> समान नागरिक संहिता चुनौतियाँ और समाधान

समान नागरिक संहिता चुनौतियाँ और समाधान

अनूप बरनवाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :356
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 12413
आईएसबीएन :9789389742305

Like this Hindi book 0

समान नागरिक संहिता चुनौतियाँ और समाधान

इस पुस्तक में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बने धर्मनिरपेक्ष कानूनों का समान नागरिक संहिता के सन्दर्भ में महत्त्व; अनुच्छेद 44 पर संविधान सभा में किये गये बहस की प्रासंगिकता; सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नागरिक संहिता के पक्ष में दिये गये निर्णयों के महत्त्व; नीति-निर्माताओं द्वारा हिन्दू कानून (1955) या भरण-पोषण कानून (1986) या तीन तलाक कानून (2017) बनाते समय और विधि आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट (2018) प्रस्तुत करते समय खो दिये गये अवसर के प्रभाव का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। विश्व के प्रमुख सिविल संहिताओं जैसे फ्रान्स, जर्मन, स्विस, टर्की, पुर्तगाल, गोवा सिविल संहिता का उल्लेख करते हुए पुस्तक में ‘इक्कीस सूत्री मार्गदर्शक सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया गया है। इसके आधार पर एक सर्वमान्य ‘भारतीय सिविल संहिता’ बनाया जा सकता है। संविधान निर्माताओं की मन्शा के अनुरूप प्रस्तावित समान नागरिक संहिता को व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिसमें व्यक्ति, परिवार एवं सम्पत्ति सम्बन्धी विषयों के साथ राष्ट्रीयता सम्बन्धी विषय शामिल हैं।

पुस्तक में ‘भारत राष्ट्र हमारा’ के रूप में राष्ट्रगान, ‘चक्रध्वज’ के रूप में राष्ट्रीय ध्वज के अतिरिक्त राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय पर्व और राष्ट्रीय दिवस, राष्ट्रीय सम्मान, भारतीय नागरिकता रजिस्टर, राष्ट्रपरक उपनाम जैसे विषयों को संविधानोनुरूप व्यापक दृष्टिकोण के साथ व्याख्या की गयी है। भारत में लागू सभी व्यक्तिगत कानूनों यथा हिन्दू कानून, मुस्लिम कानून, ईसाई कानून, पारसी कानून में मौजूद सभी विसंगति वाले विषयों जैसे बहुविवाह, विवाहउम्र, मौखिक विवाहविच्छेद (तलाक), हलाला, उत्तराधिकार, वसीयत, गोद, अवयस्कता, जनकता, दान, मेहर, भरणपोषण, महिलाओं की सम्पत्ति में अधिकार, आर्थिक अराजकता का विश्लेषण कर इनका धर्मनिरपेक्ष समाधान इस पुस्तक में दिया गया है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book