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बुंदेली लोककथाएँ

शरद सिंह

प्रकाशक : साहित्य एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :263
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 12534
आईएसबीएन :9788126043040

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बुंदेली लोककथाएँ

किसी भी संस्कृति के उद्गम के विषय में जानने और समझने में वाचिक परंपरा से आधारभूत सहायता मिलती है, जिसे लोककथा कहा जाता है। लोक कथाएँ मानव-मूल्यों पर ही आधारित होती हैं और उनमें मानव-जीवन के साथ ही उन सभी तत्वों का विमर्श मौजूद रहता है जो इस सृष्टि के आधारभूत तत्व हैं और जो मानव-जीवन की उपस्थिति को निर्धारित करते हैं।

बुंदेलखंड में मनुष्य का निवास प्रागैतिहासिक काल में भी था। उत्तर वैदिक साहित्य और पुराणों में भी इस क्षेत्र का विशेष उल्लेख है। महाकाव्य काल में भी यह क्षेत्र अन्य दूसरी संस्कृतियों के संपर्क में आता रहा। बौद्धकाल में बुंदेलखंड चेदि जनपद के अंतर्गत अवंति राज्य के अधीन रहा। चंदेल राजाओं ने बुंदेलखंड का सम्मान चरम पर पहुँचाया। इस काल की ऊँचाइयों के साथ, संस्कृत के वैदिक एवं पौराणिक कथानकों एवं श्लोकों के साथ बुंदेली जन-भाषा के रूप में मौजूद रही। अतः यहाँ की लोककथाओं की विविधता प्रभावित करनेवाली है। बुंदेलखंड का मूल समाज आज भी अपनी मौलिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों के साथ-साथ लोककथाओं के साथ जीवन यापन कर रहा है। परिवर्तन के दौर में यह धरोहर खोने लगी है। अतः इन जीवन अनुभवों को सहेज कर रखना आवश्यक है।

इस पुस्तक बुंदेली लोकथाएँ में प्रस्तुत लोककथाओं के माध्यम से बुंदेलखंड अंचल में प्रचलित आस्थाओं, जीवन शैली, मान्यताओं एवं लोक विश्वासों से पाठक परिचित हो सकेंगे, ऐसी आशा है।

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