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भारतीय दर्शन

वाचस्पति गैरोला

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13067
आईएसबीएन :9788180313509

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दर्शनशास्र समस्त शास्त्रों या विद्याओं का सार, मूल, तत्त्व या संग्राहक है।

दर्शनशास्र समस्त शास्त्रों या विद्याओं का सार, मूल, तत्त्व या संग्राहक है। उसमें ब्रह्मविद्या, आत्मविद्या या पराविद्या अध्यात्मविद्या, चित्तविद्या या अन्तःकरपाशास्‍त्र, तर्क या न्याय आचारशास्‍त्र या धर्म-मीमांसा, सौन्दर्यशास्‍त्र या कला शास्‍त्र आदि सभी विषयों का परिपूर्ण शिक्षण-परीक्षण प्रस्तुत किया गया है।
दर्शनशास्र, आत्मविद्या, अध्यात्मविद्या, आन्वीक्षिकी, सब शास्त्रों का शास्‍त्र, सब विद्याओं का प्रदीप, सब व्यावहारिक सत्कर्मों का उपाय, दुष्कर्मों का उपाय और नैष्कर्म्य, अर्थात् अफलप्रेन्तु कर्म का साधक और इसी कारण से सब सद्‌धर्मों का आश्रय और अन्तत: समूल दुःख से मोक्ष देने वाला है; क्योंकि सब पदार्थों के मूल हेतु को, आत्मा के स्वभाव को, पुरुष की प्रकृति को, बताता है; और आत्मा का, जीवात्मा का तथा दोनों की एकता का, तौहीद का, दर्शन कराता है। दर्शनशास्र का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। 'जीवन' और 'दर्शन' एक ही उद्देश्य के दो परिणाम हैं। दोनों का चरम लक्ष्य एक ही है; परम श्रेय (निःश्रेयस) की खोज करना। उसी का सैद्धान्तिक रूप दर्शन है और व्यावहारिक रूप जीवन। जीवन की सर्वांगीणता के निर्माणक जो सूत्र, तन्तु या तत्व हैं उन्हीं की व्याख्या करना दर्शन का अभिप्रेय है। दार्शनिक दृष्टि से जीवन पर विचार करने की एक निजी पद्धति है, अपने विशेष नियम हैं। इन नियमों और पद्धतियों के माध्यम से जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करना ही दर्शन का ध्येय है।
संप्रति मुख्यत: छ: आस्तिक दर्शनों न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त तथा तीन नास्तिक दर्शनों चार्वाक, बौद्ध और जैन को ही लिया जाता है।
भारतीय दर्शन का जिन-जिन विभिन्न शाखाओं या संप्रदायों में विकास हुआ यदि उनके आधार पर यह निश्चित किया जाय कि वे संख्या में कितने हैं तो इसका एक निश्चित उत्तर नहीं मिलेगा। प्राय: खण्ड दर्शन नाम के आधार पर दर्शनों की संख्या छ: मानी जाती है। भारतीय दर्शन की विभिन्न ज्ञान धाराओं का एक ही उद्‌गम और एक ही पर्यवसन है। उनकी अनेकता में एकता और उनकी विभिन्न दृष्टियाँ एक ही लक्ष्य को अनुसंधान करती है।
प्रस्तुत पुस्तक में वेद-दर्शन, उपनिषद- दर्शन, गीता-दर्शन, चार्वाक दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, सांख्य दर्शन, योग दर्शन, मीमांसा दर्शन, अद्वैत दर्शन तथा रामानुज दर्शन का विस्तृत विवेचन किया गया है।
आशा है पुस्तक दर्शनशास्र के विद्यार्थियों शोधार्थियों और पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।

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