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भाषा एवं साहित्य >> भाषा चिन्तन के नये आयाम

भाषा चिन्तन के नये आयाम

रामकिशोर शर्मा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :115
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13074
आईएसबीएन :818031071X

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भाषा-चिन्तन के नए क्षेत्रों का सांगोपांग परिचय इस पुस्तक के द्वारा संभव हो सकेगा

चिन्तन-मनन, ज्ञान के प्रसारण, सम्प्रेषण आदि के लिए भाषा की आवश्यकता है। भिन्न- भिन्न प्रयोजनों के लिए भाषा के अलग- अलग प्रारूप भी निर्मित हो जाते हैं। अन्य ज्ञान- विज्ञान की तरह भाषाविज्ञान में भी भाषा को विभिन्न कोणों से देखने -परखने की प्रक्रिया दृष्टिगोचर हो रही है। ' भाषाविज्ञान' जो आरम्भ में एक विषय के रूप में प्रतिष्ठित हुआ, वह आज एक ज्ञान का संकाय बन गया है। भाषा- चिन्तन की अनेक शाखाएँ प्रशाखाएँ बनती जा रही हैं। साहित्य के अध्येताओं के लिए भाषा पर हो रहे विचारों तथा उनके निष्कर्षों से परिचित होना आवश्यक है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि भाषा-चिन्तन के नए क्षेत्रों का सांगोपांग परिचय इसके द्वारा संभव हो सकेगा।

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