आलोचना >> बिहारी रत्नाकर बिहारी रत्नाकरजगन्नाथ दास रत्नाकर
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इस टीका में अधिकांश दोहों के अर्थ अन्यान्य टीकाओं से भिन्न है। उनके यथार्थ होने की विवेचना पाठकों की समझ, रुचि तथा न्याय पर निर्भर है
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