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गीतावली (तुलसीदास कृत)

सुधाकर पाण्डेय

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :282
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13109
आईएसबीएन :8180310833

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गीतावली' को ध्यान से पढ़ने पर 'रामचरित मानस' और 'विनयपत्रिका' की अनेक पंक्तियों की अनुगूँज सुनाई पड़ती है

गीतावली' को ध्यान से पढ़ने पर 'रामचरित मानस' और 'विनयपत्रिका' की अनेक पंक्तियों की अनुगूँज सुनाई पड़ती है। रामचरित मानस के मार्मिक स्थल 'गीतावली' में भी कथा विधान के तर्क से हैं और वर्णन की दृष्टि से भी उतने ही मार्मिक बन पड़े हैं। लक्ष्मण की शक्ति का प्रसंग भातृभक्ति का उदाहरण ही नहीं है किसी को भी विचलित करने के लिए काफी है। भाव संचरण और संक्रमण की यह क्षमता काव्य विशेषकर महाकाव्य का गुण माना जाता है। 'गीतावली' में भी कथा का क्रम मुक्तक के साथ मिलकर भाव संक्रमण का कारण बनता है। कथा का विधान लोक सामान्य चित्त को संस्कारवशीभूतता और मानव सम्बन्धमूलकता के तर्क से द्रवित करने की क्षमता रखता है। 'मो पै तो कछू न ह्वै आई' और 'मरो सब पुरुषारथ थाको' जैसे राम के कथन सबको द्रवित करते है यह प्रकरण वक्रता मात्र नहीं है बल्कि प्रबंधवक्रता के तर्क से ही प्रकरण में वक्रता उत्पन्न होती है। असंलक्ष्यक्रमव्‍यंगध्वनि के द्वारा ही यहाँ रस की प्रतीति होती है। राग-द्वेष, भाव- अभाव मूलक पाठक या श्रोता जब निवद्धभाव के वशीभूत होकर भावमय हो जाते हैं तो वे नितांत मनुष्य होते हैं और काव्य की यही शक्ति 'गीतावली' को भी महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति बना देती है।

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