लोगों की राय

आलोचना >> हिन्दी आलोचना के आधार स्तम्भ

हिन्दी आलोचना के आधार स्तम्भ

रामेश्वर खण्डेलवाल

सुरेशचन्द्र गुप्त

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13124
आईएसबीएन :9788180314896

Like this Hindi book 0

प्रस्तुत पुस्तक 'हिन्दी आलोचना के आधार-स्तम्भ' में समीक्षात्मक लेखों का संकलन विश्वविद्यालयों की उच्चतम कक्षाओं के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर किया गया है

प्रस्तुत पुस्तक 'हिन्दी आलोचना के आधार-स्तम्भ' में समीक्षात्मक लेखों का संकलन विश्वविद्यालयों की उच्चतम कक्षाओं के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर किया गया है। इसकी मूल प्रेरणा यह रही है कि हिन्दी आलोचना के चिन्तनगत उत्कर्ष बिन्दु और विषय प्रतिपादन की वैज्ञानिकता का समवेत रूप हिंदी आलोचना के जिज्ञासु तथा प्रबुद्ध छात्र अध्येताओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाये, जिससे कि वे उसकी अद्यतन उपलब्धि का कुछ अनुमान कर सकें। निश्चय ही समग्र चित्र प्रस्तुत करने में इस प्रकार के आयोजन को और भी विशद बनाने के लिए हिन्दी के अनेक लब्धप्रतिष्ठ आचार्यों और चिन्तकों की विचार-सरणियों की अपेक्षा व गुंजायश हो सकती थी, पर योजना की साधन-सीमाओं के कारण अपने विचार को प्रस्तुत रूप देकर ही हमें सन्तुष्ट होना पड़ा। विद्वज्जन इस ग्रन्थ को हमारे मूल आशय का एक प्रतीक रूप समझकर ही ग्रहण करने की कृपा करें। यदि भविष्य में अवसर मिला तो इस शृंखला में कड़ियाँ जोड़कर हम इस कार्य को आगे बढ़ाने में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे।
इस ग्रंथ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य नन्ददुलारे, वाजपेयी, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा आचार्य नगेन्द्र के आलोचनात्मक कृतित्व के उत्तमांश का कुछ श्रेष्ठ निबन्धों के रूप में संकलन किया गया है। प्रत्येक विद्वान् के कृतित्व को सम्यक् रूप से हृदयंगम करने की दृष्टि से उन पर अधिकारी विद्वानों के भी कुछ लेख परिपार्श्विक अध्ययन के लिये दिये गये हैं। आशा है यह पद्धति नियत उद्देश्य की सिद्धि में विशेष रूप से सहायक होगी।
इन निबन्धों के रूप में अत्यन्त मननीय सामग्री प्रस्तुत करने का यथा-सम्भव प्रयत्न किया है। विश्वविद्यालय के छात्रों की चेतना में इनका रस घुल-मिल जाये और परिणामस्वरूप मेधावी छात्र अपनी-अपनी प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि से हिन्दी- आलोचना की उत्कर्ष-रेखा को लाँघकर, आगे बढ़ने की स्फूर्ति से उज्जीवित हों, नये समीक्षा-प्रतिमानों की स्थापना का स्वप्न देखें और उसके लिए क्रियाशील हों-इसी में इस प्रयास की चरम सिद्धि होगी। विद्वानों की रचनाएँ मुख्य पाम सामग्री के रूप में इसमें संकलित की गयी हैं और सहायक सामग्री के रूप में विद्वतापूर्ण लेखों को समाविष्ट किया गया है।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book