लोगों की राय

आलोचना >> कफन : एक पुनर्पाठ

कफन : एक पुनर्पाठ

सं. पल्लव

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13161
आईएसबीएन :9788180319525

Like this Hindi book 0

युवा आलोचक पल्लव ने इस कहानी पर हिन्दी के कुछ बौद्धिकों के विचार-आलेखों को संकलित-संपादित कर इस किताब में प्रस्तुत कर दिया है

जन पक्षधरता प्रेमचंद के संवेदनामूलक और विचारप्रेरित स्वभाव में थी,लेकिन एक रचनाकार के रूप में उनके लक्ष्य में थी-कला सिद्धि। देश-विदेश के अनेक नामी कथाकारों को उन्होंने न केवल पढ़ा था, जब-तब साहित्यिक प्रश्नों और सौंदर्यगत समस्याओं पर भी अपनी मान्यताओं का विवेचन भी किया था। हम उन्हें अपने कला-कर्म को निरंतर निखारता पाते हैं -उनकी सृजन यात्रा में कमतर-बेहतर का अंतराल एक उत्कर्ष-क्रम में ही अधिक मिलता है। 'सेवासदन' जैसे आदर्श-प्रधान उपन्यास से 'गोदान' जैसे यथार्थ-प्रधान तक और 'पंचपरमेश्वर' जैसी नीति-निर्देशक कहानी से 'कफ़न' जैसी नीति विडम्बना-गर्भित कहानी तक की उनकी कथायात्रा काम विस्मयकारक नहीं है। 'गोदान' में फिर भी एक-सा कथाविन्यास नहीं है -उसकी श्रेष्ठता का जितना आधार होरी-धनिया की त्रासद जीवन-कथा है उतना अवांतर कथाएँ नहीं,जबकि 'कफ़न' मानवीय त्रास के एक अखंड कलानुभव की महत रचना है; केवल इसलिए नहीं कि वह कहानी के लघु कलेवर में है बल्कि इसलिए कि लेखक के कम से कम बोलने पर भी वह रचना इतना बोलती है कि बहुत सारे सच उजागर होते चलते हैं। अपने समाज के संतप्त निम्नजन से साक्षात्कार में एक तप:पूत कलाकर्मी की कलम से जाने-अनजाने एक ऐसी कला-निर्मिति हुई है,जो अद्भुत अपूर्व है। यह सुखद है कि युवा आलोचक पल्लव ने इस कहानी पर हिन्दी के कुछ बौद्धिकों के विचार-आलेखों को संकलित-संपादित कर इस किताब में प्रस्तुत कर दिया है। एक कहानी भी गंभीर विमर्श का प्रस्थान बिंदु हो सकती है और यह आयोजन वह दुर्लभ अवसर उपलब्ध करवाता है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book