उपन्यास >> कंकाल कंकालजयशंकर प्रसाद
|
0 |
कंकाल' भारतीय समाज के विभिन्न संस्थानों के भीतरी यथार्थ का उद्घाटन करता है। समाज की सतह पर दिखायी पड़नेवाले धर्माचार्यों, समाज- सेवकों, सेवा-संगठनों के द्वारा विधवा और बेबस स्त्रियों के शोषण का एक प्रकार से यह सांकेतिक दस्तावेज है
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book