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आलोचना >> महादेवी वर्मा की कविता में सौन्दर्य भावना

महादेवी वर्मा की कविता में सौन्दर्य भावना

गोविंद पाल सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13199
आईएसबीएन :9788180318214

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महादेवी के रचनात्मक विवेक को जानने के लिए यह किताब एक समानान्तर रूपक की तरह है

यह किताब महादेवी की लिखत-पढ़त, उनके चित्रों-रेखांकनों, उनके जीवन-वृत्त और उनके बारे में लेखक की संस्कृतियों के भीतर से उनको. समझने की एक निजी कोशिश है। लेखक की निजी संस्मृतियाँ भी महादेवी के कर्तृत्व को व्याख्यायित करने और उसके सारतत्त्व तक पहुँचने की बुनियाद के बतौर हैं। महादेवी का संसार जितना अन्तरंग है, उतना ही बहिरंग।
अन्तरंग में दीपक की खोज है और बहिरंग के कुरूप-काले संसार में सूरज की एक किरण की। महादेवी के सम्पूर्ण कृतित्व में अद्‌भुत संघर्ष है और पराजय कहीं नहीं।
इस किताब का हर शीर्षक एक नया अध्याय है और इसका शिल्प .आलोचना के क्षेत्र में एक नयी सूझ। साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही आलोचना की पठनीयता भी जरूरी है। दरअसल किसी कविता, कला, कथा, विचार या लेखक के प्रति सहज उत्सुकता जगाना और उसे समझने का मार्ग प्रशस्त करना ही आलोचना का उद्देश्य है। और यह किताब यही काम करती है। महादेवी के रचनात्मक विवेक को जानने के लिए यह किताब एक समानान्तर रूपक की तरह है। उनकी कविता, गद्य और उनकी चित्र-वीथी - तीनों मिलकर ही महादेवी के सौन्दर्यशास्त्र का चेहरा निर्मित करते हैं। यह किताब इसी चेहरे का दर्शन-दिग्दर्शन है।

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