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पारसी थियेटर : उद्भव एवम विकास

सोमनाथ गुप्ता

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :297
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13235
आईएसबीएन :9788180319907

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ऐसा ग्रंथ हिन्दी में पारसी थियेटर पर नहीं लिखा गया जिसमें मूलभूत स्रोतों पर अवलम्बित इतनी अधिक सामग्री मिलती हो

डॉ. सोमनाथ गुप्त ने सन् 1947 में हिन्दी नाटक साहित्य का इतिहास लिखा था।
प्रस्तुत रचना में यथास्थान यह बताया गया है कि विक्टोरिया थियोट्रिकल मण्डली की स्थापना से पहले भी पारसियों और गैर-पारसियों की मण्डलियाँ नाटक किया करती थीं परन्तु बड़े और सुदृढस्‍तर पर नाट्यकला को प्रतिष्ठित करने का श्रेय विक्टोरिया, एलफिनस्‍टन और जोरास्ट्रियन नाटक मण्डलियों को ही था। इनके सम्बन्ध में गुजराती के साप्ताहिक पत्र ' रास्तगोफ्तार ', में थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है। इसके सम्पादक कैखुसरो कावराजी स्वयं नाटककार, निर्देशक और अभिनेता थे। अंग्रेजी के ' बाम्बे टाइम्स ' और ' बाम्बे कूरियर एण्ड टेलिग्राफ ' की पुरानी फाइलें अनेकों सूचनाओं से भरी पड़ी हैं। महाराष्ट्र सरकार के ' आलेख और पुरातत्व विभाग' की सामग्री जीर्ण-शीर्ण है। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण गुजराती साप्ताहिक ' कैसरेहिन्द ' है। इसी पत्र में धनजी भाई नसरवानजी पटेल के पारसी नाटक सम्बन्धी अनेकों लेख निरन्तर रूप से प्रकाशित हुए थे। इन लेखों में अधिकांशत: पारसी अभिनेताओं की चर्चा है। कुछ नाटक मण्डलियों, उनके मालिकों और निर्देशकों का विवरण भी आ गया है। जहाँगीर खम्बाता की रचना ' मारो नाटकी अनुभव ' भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है। सभी नाटक मण्डलियाँ जहाँगीर की अभिनय-कला और निर्देशन शक्ति का लोहा मानती थी।
सबसे अधिक उपयोगी और प्रमाणित वे दीबाचे (भूमिकाएँ) है जो किसी-किसी नाटक के आदि में मिलते हैं। इन दीबाचों से यह पता चलता है कि नाटक किसने लिखा? किस नाटक मण्डली के लिए लिखा? कब उसका प्रकाशन हुआ? तथा नाटककार का नाटक-विशेष के लिए क्या दृष्टिकोण है?
प्रस्तुत कृति में सभी प्राप्य और दुधार सामग्री का उपयोग किया गया है। ऐसा ग्रंथ हिन्दी में पारसी थियेटर पर नहीं लिखा गया जिसमें मूलभूत स्रोतों पर अवलम्बित इतनी अधिक सामग्री मिलती हो।

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