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प्रेमचन्द की विरासत और गोदान

शिवकुमार मिश्रा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :153
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13257
आईएसबीएन :9788180316111

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गोदान' मूलत: ग्राम-केन्द्रित उपन्यास है और उसी रूप में मान्य भी है

'गोदान' मूलत: ग्राम-केन्द्रित उपन्यास है और उसी रूप में मान्य भी है। 'गोदान' में ग्राम और नगर की इन दुहरी कथाओं को लेकर उसके रचना-काल से तरह-तरह के सवाल और विवाद उठाये गये हैं तथा दोनों के समुचित संयोजन पर भी प्रश्नचिह्न लगाये गये हैं। उपन्यास में गाँव की कथावस्तु के साथ नगर की कथा को जोड़ने में प्रेमचन्द का उद्देश्य क्या था, और दोनों के संयोजन में वे कहाँ तक अपने संवेदनात्मक उद्देश्य को पूरा कर सके। 'गोदान', हिन्दी कथा-साहित्य को प्रेमचन्द की बहुत महत्त्वपूर्ण देन है। उसे साहित्य के क्षेत्र में एक 'क्लासिक' का स्थान मिला है। अपने गहन संवेदनात्मक गुण और अपने निहायत सादे किन्तु अतिशय प्रभावशाली रचना-शिल्प के नाते उपन्यास के भावी विकास के मानक के तौर पर स्वीकार किया गया है। उपन्यास के परवर्ती विकास में उसकी छाप और उसके प्रतिचित्र आसानी से देखे और परखे जा सकते हैं।

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