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रामना वेसोड

हीरालाल शुक्ल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13269
आईएसबीएन :9788180319747

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रामना वेसोड़' के माध्यम से दण्डामी अपने विगत वैभव से पुन: जुड़ सकें, इस पुस्तक के ज़रिए बस यही विनम्र प्रयास है

रामना वेसोड़' माडिय़ा बोली में रामकथा है। यह पुस्तक दण्डामी माडिय़ा जनजातियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में उनके स्वतंत्र अस्तित्व और संस्कृति को रामकथा के साथ-साथ एक खोजी भूमिका से भी जोड़ती है। गोस्वामी तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' एक ऐसी कृति है, जिसका दो तिहाई से अधिक अंश वनभूमि और वनजनों से सम्बद्ध है और आदिवासियों के जीवन-जगत् में आज भी शामिल है, जिससे ये अपना सम्बन्ध पुरातन मानते हैं, इसलिए अभिन्न जुड़ाव रखते हैं। गौरतलब है कि दण्डामी माडिय़ा अपने गोत्र और देवतावर्ग के अनुसार अपने को वानरवंश से सम्बद्ध करते हैं। इनमें प्रचलित प्रबन्धगीत मूंजपाटा (वानरगीत) से यह ध्वनित होता है कि ये कभी रामकथा से जुड़े हुए थे। इस तरह यह पुस्तक रामकथा के माध्यम से हाशिए का जीवन जी रही जनजातियों की एक पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी रचती है। 'रामना वेसोड़' के माध्यम से दण्डामी अपने विगत वैभव से पुन: जुड़ सकें, इस पुस्तक के ज़रिए बस यही विनम्र प्रयास है!

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