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श्रीरामशरण गुप्त : रचना एवं चिन्तन

ललित शुक्ल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13323
आईएसबीएन :0

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शोध छात्रों, विद्वानों और विचारकों के लिए सियारामशरण पर लिखे गए लेखों का, यह संकलन निश्चय ही महत्वपूर्ण होगा

श्री सियारामशरण गुप्त हिन्दी के विशिष्ट कवि, कहानीकार, निबन्धकार और समीक्षक रहे हैं। उनकी कहानियों और कविताओं की प्रशंसा हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, निराला, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार और डॉ. नगेन्द्र ादि ने समय-समय पर की है। उनके गोपिका काव्य को जो प्रशंसा हिन्दी में मिली है, वह उनके अग्रज श्रीमैथिलीशरण गुप्त से कम नहीं है। अनवरत गांधीवादी बने रहने वाले सियारामशरण गुप्त जी की रचनाओं में गांधीवादी वैचारिकता, युगानुरूप वैष्णवता, अन्याय के प्रति विरोध भावना, हरिजनों के प्रति सहानुभूति और गुलामी के प्रति आक्रोश मिश्रित प्रतिवाद दृष्टि मिलती है। अपने समय की समस्याओं के प्रति वे अपेक्षाकृत अधिक सजग हैं। उनके गद्य की भाषा, कहानियों की मार्मिक संवेदनशीलता के माध्यम से ही नहीं, व्यंग्य प्रधान टिप्पणियों और अनूदित कृतियों आदि में भी गहरी सृजनशीलता लिए हुए मिलती है। उपन्यास, संस्मरण, नाटकों और निबन्धों में सियारामशरण जी का योगदान समकालीन रचनाकारों की तुलना में कम नहीं है।
यह पुस्तक इन सभी प्रश्नों पर नए सिरे से विचार करती है और सियारामशरण गुप्त जी के अवदान को उनके अत्यन्त मानवीय और सहज व्यक्तित्व के साथ ही साथ साहित्यिक दृष्टि से मूल्यांकित करती है। कम लोग जानते हैं कि उनका हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में कितना बड़ा योगदान है। यह पुस्तक उन महत्वपूर्ण कृतियों और संग्रहों की ओर न केवल संकेत करती है, बल्कि रचनाओं के मूल्यांकन के प्रति एक नया दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है। शोध छात्रों, विद्वानों और विचारकों के लिए सियारामशरण पर लिखे गए लेखों का, यह संकलन निश्चय ही महत्वपूर्ण होगा।

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