लोगों की राय

कविता संग्रह >> सूर्य बन कर उगना है

सूर्य बन कर उगना है

राजेंद्र कुमार वर्मा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :98
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13332
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

'सूर्य बनकर उगना है'' की कविताएँ हमसे जुड़ती हीं नही हमें नवकल्प के लिये प्रेरित भी करती हैं

सूर्य बनकर उगना है'' की कविताएँ रचनाकार के विस्तृत एवं बहुआयामी अनुभव संसार को वाणी देती हैं। वे जहां जीवन और जगत की सच्चाई से हमारा साक्षात्कार कराती है वहीं वे हमें आत्मविश्लेषण ओर आत्ममंथन के लिये भी प्रेरित करती है। इससे भी आगे इस संग्रह की कविताएँ जीवन-संघर्ष के आत्म-विश्वास जगाकर हमें भविष्य के लिये आस्थावान बने रहने की अन्तदृष्टि भी देती हैं।
अतीत और वर्तमान में व्याप्त मानवदंश की प्रवृत्ति और मूल्यों की क्षरणशील स्थितियां कवि के लिये गहरी चिन्ता का विषय रही हैं। आज जीवन में उदात्त के तीव्र विलयन और अनुदात्त के बहुमुखी आच्छादन का कवि ने अपनी अनेक कविताओं में मार्मिक एवं प्रभावी उद्‌घाटन किया है। इस प्रक्रिया में वह जहाँ जीवन प्रवाह में बहा है, डूबा-उतराया है वहीं उसने धाराओं की गति को भी समझने की चेष्टा की है। एक पर्वतारोही के रूप में प्रकृति में रमते, चारों ओर देखते और रुक-रुक कर थकान मिटाते हुए शिखर तक पहुँचने की संकल्पित मानसिकता रचनाकार के साथ आद्यन्त रही है। जहाँ वह अन्तर्मुखी हुआ है वहाँ भी वह आस्था का सम्बल नहीं छोड़ता। इसीलिये धरती की महत्ता और उससे मानव की अभिन्नता का 'शाश्वत सत्य कवि की आस्था का मूलस्वर है।
इस संग्रह की कविताएं इस बात की प्रमाण हैं कि कवि की अनुभूत्यात्मक और बौद्धिक चेतनाएं अन्तर्द्वन्द्व और जीवन संघर्ष के बीच वेगवान बनकर उसे रचनाकर्म में प्रवृत्त करती रही हैं। जीवन के मार्मिक अनुभवों ने अनुभूतियों में रूपान्तरित होकर कविताओं को रूपाकार दिया है। इसीलिये इस संग्रह की कविताओं में एक अवकल निजता है। कवि की भाषा अनुभूतियों वो प्रभावी रूप में अभिव्यक्ति देती हुई अपना अनुशासन स्वयं निर्धारित करती है। कुल मिलाकर ''सूर्य बनकर उगना है'' की कविताएँ हमसे जुड़ती हीं नही हमें नवकल्प के लिये प्रेरित भी करती हैं।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book