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स्वैर

रामप्रकाश प्रकाश

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13335
आईएसबीएन :9788180319822

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स्वैर' निश्चित रूप से वेदना का काव्य है! मिटटी को मान माननेवाले देश में नारी के विरुद्ध स्वराचार कितना जघन्य है, इसका मार्मिक चित्र कवि ने प्रस्तुत किया है

अत्याचार का एक रूप स्वैराचार है। हम यह भी कह सकते हैं कि स्वैराचार ही अत्याचार की राह है। स्वैराचार का अर्थ है-व्यक्ति-मन का लोक-मन और लोक-मत से सर्वथा विलगाव! सामान्य भाषा में कहें तो मनमानापन। अपनी इच्छा इतनी प्रबल हो जाए कि समाज के सरे अनुशासन उसके समक्ष बोने हो जाएँ तो इसे ही स्वैराचार कहते हैं। स्वैर-भाव दूषित मनोवृत्ति है। इसके परिणाम भयंकर होते हैं।पूरी मानवीय सभ्यता पर यह प्रश्नचिन्ह है। आज तमाम सामाजिक विकृतियों, दूषित पर्यावरण ने समाज में स्वैर-भाव को बढ़ावा दिया है, और कामेच्छा सडकों पर नृत्य कर रही है। दैनंदिन की घटनाओं में इसका प्राधान्य है और ऐसे में कोई कवी-मन शिकाविद इससे विचलित-विगलित न हो, यह संभव नहीं है। कवि-ह्रदय श्री रामप्रकाश 'प्रकाश' ने इसी चिंता को पुरे एतिहासिक-पोराणिक परिप्रेक्ष्य में अपनी काव्यकृति 'स्वैर' में विस्तार से वर्णन किया है! समाचार-पत्रों में प्रकाशित तमाम घटनाओं ने प्रसिद्द शिक्षाविद, शिक्षा विभाग से जुड़े प्रशाकीय दायित्व से संपृक्त तथा प्रकृत्या कवी रामप्रकाश 'प्रकाश' को उद्देलित किया और उनकी वेदना कविता के रूप में प्रवाहित हो उठी। अंतर केवल इतना है कि उन्होंने स्वैरियो को निषाद की भांति केवल अप्रतिष्ठा का शाप न देकर सुधरने का सन्देश दिया है। सुधर की यह अपेक्षा कवित ने मानव स्वभाववश की है! उन्हें मानवता पर अटूट विश्वास है। 'स्वैर' निश्चित रूप से वेदना का काव्य है! मिटटी को मान माननेवाले देश में नारी के विरुद्ध स्वराचार कितना जघन्य है, इसका मार्मिक चित्र कवि ने प्रस्तुत किया है।

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