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उत्तर आध्यात्मिकता : बहूआयामी सन्दर्भ

पाण्डेय शशिभूषण शितान्शु

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :314
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13351
आईएसबीएन :9788180314827

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ह पुस्तक पहली बार 18 उत्तर-आधुनिक चिन्तकों, सर्जकों, कलाकारों और उनकी मान्यताओं से आपको परिचित कराती है

अधिवृत्तान्त और महावृत्तान्त को खारिज करने वाली तथा अपनी बहुआयामिता में विश्वव्यापी उत्तर-आधुनिकता लगातार बौद्धिकों की मीमांसा का विषय रही है। पर हिन्दी में अब तक इसे इसकी व्यापकता में न देखकर उत्तर- संरचनावाद, नव्य पूँजीवाद और विश्व-बाजारवाद से ही जोड़कर विवेचित किया गया है।
उत्तर- आधुनिकता का सरोकार वास्तुकला से स्थापत्य और अभिकल्पन कला तक; सर्जनात्मक और आलोचनात्मक साहित्य से सौन्दर्यशास्त्र, डी-कंस्ट्रक्शन और उत्तर-मार्क्सवाद तक; संस्कृति और स्त्रीवाद से समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र. दर्शन, विधि और विज्ञान तक; संगीत, चित्र और छायाचित्र से फिल्म, वीडियो, दूरदर्शन और संचार-माध्यमों के प्रौद्योगिकीय विस्फोट तक व्याप्त है।
यह पुस्तक इस व्यापकता को निरूपित करती है तथा गहनता में जाकर यह बताती है कि उत्तर-आधुनिकता के नाभिकेन्द्र में 'इच्छा' सक्रिय है। यह 'विवेक' को केन्द्र में रखने वाली आधुनिकता को नष्ट-भ्रष्ट कर चुकी है। यह ज्ञान को शक्ति मानती है- ६ लेंग्‍यूज 1०68० श्पावरह उत्पादन, श्रम और इतिहास के अन्त की घोषणा कर चुकी है, साथ ही मूल्य- मीमांसा को खारिज भी। पर यह न्याय-व्यवस्था में विश्वास रखती है, यह मानती है कि न्याय लोगों के आत्म-निर्धारण में बसता है। यदि ल्योतार का विश्वास 'ब'बहुईश्वरवादी'र 'मूर्तिपूजावाद' में है, तो बौद्रिआ अमेरिकी 'वाटरगेट स्कैंडल' और 'डिस्नीलैण्ड' -दोनों को उत्तर-आधुनिक अधि-यथार्थ मानता है 1 उत्तर-आधुनिक संसार अधि-यथार्थ का छाया- संसार है।
इस पुस्तक में पहली बार उत्तर-आधुनिकता को तुलनात्मक, आलोचनात्मक, चिन्तकीय, स्त्रीवादी, मार्क्सवादी, उत्तर- मार्क्सवादी और बहुआयामी सन्दर्भों में विवेचित किया गया है। यह पुस्तक पहली बार 18 उत्तर-आधुनिक चिन्तकों, सर्जकों, कलाकारों और उनकी मान्यताओं से आपको परिचित कराती है।
उत्तर-आधुनिक समय, स्थल और चिन्तकीय विमर्श से परिचित होने के लिए हिन्दी में एकमात्र पठनीय अद्‌यतन प्रामाणिक पुस्तक।

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