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वचनोद्यान

सिद्धय्य पुराणिक

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1982
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13353
आईएसबीएन :0

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वचन-साहित्य कन्नड़ साहित्य का अनमोल अध्याय है

वचन-साहित्य कन्नड़ साहित्य का अनमोल अध्याय है। बारहवीं शताब्दी के आरंभ में महात्मा बसवेश्वर के नेतृत्व में उद्‌गमित होकर इसने एक दशक के भीतर ही लाखों वचनों का रूप धारण किया। कर्णाटक, आध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, ओड़िसा, कश्मीर आदि भारत के विभिन्न भागों से हजारों अध्यात्म-पिपासु 'कल्याण' आये जहां महात्मा बसवेश्वर कलचुर्य नरेश बिज्जल के भंडारी और मंत्री थे। इनमें नर-नारी, दलित, शूद्र, अस्पृश्य, अनपढ़, आत्मज्ञानी, राजा, रैक, सभी थे। हर वर्ग के, हर उद्योग के, हर स्तर के हजारों हतभाग्यों के पतित और पद-दलित स्त्री-पुरुषों के बसवेश्वर भाग्य-विधाता बने। उनके गद्य-पद्य के माध्यम रूप में सरल, सुन्दर और हृदय- स्पर्शी कन्नड वचनों ने उनको नया जीवन दिया, नया जीवन-दर्शन दिया। उनका आदोलन जाति-व्यवस्था का मूलोत्पाटन करने, सब मानवों और स्त्री-पुरुषों की समानता स्थापित करने, रमल, ज्योतिष, यज्ञ-याग, तीर्थयात्रा, बहु- देवता-पूजा, परोपजीवन आदि से सामान्य मानवों को मुक्त करके ऐकेश्वर-भक्ति और दयामूल धर्म का प्रसार करने, सत्य शुद्ध कायक को हर एक के लिये आवश्यक बना कर स्वावलम्बी समाज को रूपायित करने और कायक से मिलनेवाले पावन धन में अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करके शेष को दासोह के लिए समर्पित करने के तत्व के अनुष्ठान के लिये प्रारम्भ हुआ था। इस आन्दोलन को आश्चर्यकारी सफलता अत्यल्प अवधि में मिली, क्योकि इसे जन-सामान्य का समर्थन मिला।
आज भी वचन माध्यम को आधुनिक युग के प्रश्नों और समस्याओं के विश्लेषण और आज के जीवन की संकीर्णता आदि के पृथक्करण के लिए अपनाने के प्रयत्न जारी हैं। 'वचनोद्यान' उस दिशा में एक विनम्र प्रयास है।

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