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यशपाल का विप्लव

यशपाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13364
आईएसबीएन :9788180318528

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यशपाल एक व्यक्ति नहीं, आन्दोलन थे और ‘विप्लव’ इस आन्दोलन का उद्घोष।

“स्वाधीनता आन्दोलन के अंतिम दशक में ‘विप्लव’ का प्रकाशन हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में एक विस्फोट सरीखा था। यशपाल ने अपने क्रातिकारी दौर की वैचारिक सम्पदा को इस पत्रिका के मंच से व्यापक राजनितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ प्रधान किए। ‘विप्लव’ की विशिष्टता एक आन्दोलन सरीखी थी। ब्रिटिश साम्राज्यवाद को नेस्तनाबूद किए जाने के सारे प्रयत्नों के साथ सहभागिता दर्ज करते हुए भी यशपाल ने ‘विप्लव’ को स्वाधीनता आन्दोलन के वर्स्वशाली नेतृत्व के प्रतिपक्षी की भूमिका में ढाल रखा था। ‘विप्लव’ के सम्पादकीयों का स्वरुप प्रायः राजनितिक व् सामाजिक हुआ करता था। ‘विप्लव’ को समय-समय पर ब्रिटिश शासन के कोप का शिकार होना पड़ा। दरअसल ‘विप्लव’ के सम्पादकीय अग्रलेखों के माध्यम से स्वाधीनता संग्राम की उस दौर की उन हलचलों और बहसों का भी पता चलता है जो प्रायः मुख्य धारा की इतिहास में अनुपस्थित हैं। कहना न होगा कि यशपाल एक व्यक्ति नहीं, आन्दोलन थे और ‘विप्लव’ इस आन्दोलन का उद्घोष।”

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