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विष्णु खरे

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :116
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13400
आईएसबीएन :9788183618403

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एक अनोखा प्रयोग विष्णु खरे की मिथकीय और ऐतिहासिक कविताओं में देखा जा सकता है

विष्णु खरे की कवितायेँ हिंदी भाषा के सामर्थ्य को कई तरह के विषयों में ले जाकर विस्तृत और स्थित करती हैं। उनमे महाभारत से आज के यथार्थ का वृहत वितान बनता है। वाक्य-विन्यास में यदि शाब्दिक लाघव है, तो शब्दों में भाषायी अर्थ-गहनता। दोनों पर अदभुत पकड़ और चुस्त अंतर्गतियाँ हैं : ठहरी गहराइयाँ हैं तो पाँव उखाड़ देने वाला प्रवाह भी। खरे कि कविता के डॉ स्पष्ट ध्रुवांत बनते हैं। एक तो उस प्रकार कि कविताएँ हैं, जो मौजूदा यथार्थ कि भीड़ में कंधे रगडती ही चलती हैं; दूसरी वे कवितायेँ, जो हमें अनुभवों कि अधिक अमूर्त शक्तियों का अहसास कराती हैं। दोनों के बीच फासले है, किन्तु विरोध नहीं-यह आभास उनके काव्य-बोध को एक जटिल संगति देता है और अनुभूतियों के एक ज्यादा बड़े क्षितिज कि पहचान कराती है। Narration या वर्णन-विवरण कि अनेक विधियों को विष्णु खरे ने अपनी कविताओं में कई तरह से इस्तेमाल किया है- इस बात को सही तरीके से लक्षित किया जाना चाहिए। एक अनोखा प्रयोग उनकी मिथकीय और ऐतिहासिक कविताओं में देखा जा सकता है। ‘महाभारत’ प्रसंग में रिपोर्ताज शैली का इस्तेमाल कविता, मिथक और मौजूदा यथार्थ को एक दुर्लभ त्रिकोणात्मक तनाव देता है।

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