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देश, धर्म और साहित्य

विद्यानिवास मिश्र

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :107
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13445
आईएसबीएन :8171195059

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संग्रह के निबंधों में आज का समय कहीं भी ओझल नहीं हुआ, बल्कि ठोस धरातल पर क़दम जमाए खड़ा

साहित्य वास्तव में मनुष्य धर्म को रेखांकित करने वाला वह रूप है, जो अपने देश के समाज के परिदृश्य को उसके बहुआयामी रंगों में कैनवास पर फैला हुआ दिखलाता है। साहित्य ही देश को गति भी देता है और उसे जीवंत बनाने का प्रयत्न करता है। धर्म से साहित्य का रिश्ता एक ख़ास मायने में परिलक्षित होता है। साहित्य द्वारा ही धर्म का परिचालन होता है, लेकिन वह धर्म से तटस्थ रहकर अपनी बात कह सकने में समर्थ है। इसीलिए ये तीनों लेखक को परस्पर ओत-प्रोत दिखाई पड़े हैं। ये अंदर या बाहर रहते हुए भी एक-दूसरे के पूरक होने का आभास देते हैं। संग्रह के निबंधों में आज का समय कहीं भी ओझल नहीं हुआ, बल्कि ठोस धरातल पर क़दम जमाए खड़ा है, परन्तु कालातीत से ग्रहण करने की पूरी क्षमता भी रखता है।

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