उपन्यास >> किस्सा लोकतंत्र किस्सा लोकतंत्रविभूति नारायण राय
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कहने की आवश्यकता नहीं कि एक भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र पर यह उपन्यास बेहद तीखी, लेकिन पूरी तरह जनतांत्रिक टिप्पणी है।
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