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गजलें और शायरी >> मुझमें कुछ है जो आईना सा है

मुझमें कुछ है जो आईना सा है

ध्रुव गुप्त

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13556
आईएसबीएन :9788183616836

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ध्रुव गुप्त की शायरी की एक बड़ी ताकत है-लोक। लोक गाँव का, नगर का।

'मुझमें कुछ है जो आईना सा है' ध्रुव गुप्त की ग़ज़लों-नज्मों का वह संग्रह है जिसमें-रोशनी का अँधेरा और अँधेरे की रोशनी है। और यही शायर की वह हासिलात हैं जिनके सहारे नहीं, ताक़त से उसने अपनी शायरी के मिजाज और फन को एरक जदीद मुकाम दिया है। ध्रुव गुप्त की शायरी की एक बड़ी ताकत है-लोक। लोक गाँव का, नगर का। शायर के इस लोक में सम्बन्ध-सरोकार, दुःख-आग और आवारगी तथा दूब-भर उम्मीद के विभिन्न रंग-रूप और आयामों के अन्दाजे-बयाँ सुर में सृजन-सा नजर आते हैं। लफ्जों की आँखों और जुबाँ से पता चलता है कि लोग यहाँ अपने ख्वाबों के लिए जीते भी हैं, मरते भी हैं और मारे भी जाते हैं। इसलिए यहाँ खामोशियों भी गाई जाती हैं। संग्रह में गजलें हों या नज्‍म-स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा अपने कथ्य-प्रकृति के इन्तखाब में बचपन और माँ का है। समाज और संस्कृति का है, जो तसव्‍वुर और हकीकत की केन्द्रीयता में वजूद और आफाक- की निर्मिति के लिए अहम भूमिका निभाते हैं।

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