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कविता संग्रह >> नये युग में शत्रु

नये युग में शत्रु

मंगलेश डबराल

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :116
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13572
आईएसबीएन :9788183613866

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मंगलेश असाधारण संतुलन के कवि हैं-उनकी कविता ने न यथार्थ-बोध को खोया है, न अपने निजी संगीत को

एक बेगाने और असंतुलित दौर में मंगलेश डबराल अपनी नयी कविताओं के साथ प्रस्तुत हैं-अपने शत्रु को साथ लिये। बारह साल के अन्तराल से आये इस संग्रह का शीर्षक चार ही लफ्जों में सब कुछ बता देता है : उनकी कला-दृष्टि, उनका राजनितिक पता-ठिकाना, उनके अंतःकरण का आयतन। यह इस समय हिंदी की सर्वाधिक समकालीन और विश्वसनीय कविता है। भारतीय समाज में पिछले दो-ढाई दशक के फासिस्ट उभार, सांप्रदायिक राजनीति और पूँजी के नृशंस आक्रमण से जर्जर हो चुके लोकतंत्र के अहवाल यहाँ मौजूद हैं और इसके बरक्स एक सौंदर्य-चेतस कलाकार की उधेड़बुन का पारदर्शी आकलन भी। ये इक्कीसवीं सदी से आँख मिलाती हुई वे कविताएँ हैं जिन्होंने बीसवीं सदी को देखा है। ये नये में मुखरित नये को भी परखती हैं और उसमें बदस्तूर जारी पुरातन को भी जानती हैं।

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