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हास्य-व्यंग्य >> नेकी कर, अखबार में डाल

नेकी कर, अखबार में डाल

आलोक पुराणिक

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13573
आईएसबीएन :9788171197804

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कोई वक्त रहा होगा, जब नेकी दरिया में डाली जाती थी। कोई वक्त रहा होगा, जब साधु-संत प्रवचन करते थे

तमाम दरियाओं की गंदगी देखकर पता लगता है कि लोग अब दरियाओं में नेकी तो नहीं डालते। कोई वक्त रहा होगा, जब नेकी दरिया में डाली जाती थी। कोई वक्त रहा होगा, जब साधु-संत प्रवचन करते थे, अब प्रवचनों की मार्केटिंग होती है। रामकथा की मार्केटिंग होती है। राम की मार्केटिंग होती है। राम के चाकर तुलसीदास ने लिखा था कि बड़ी मुश्किल से खाने का इंतजाम हो पाता है, मस्जिद में सोना पड़ता है। अब राम के चाकर एक मस्जिद छोड़, पचास मस्जिद भर की जगह कब्जा कर लें। राम की चाकरी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी के रिटर्न इधर समान हो गए हैं। राम की चाकरी में लगे सीनियर लोग भी मर्सीडीज में चल रहे हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी में लगे सीनियर लोग भी मर्सीडीज में चल रहे हैं। राम का कारोबार इधर बहुत रिटर्न वाला हो गया है। गौर से देखने पर पता चलता है कि बाजार सिर्फ वहाँ नहीं है, जहाँ वह दिखाई पड़ता है। बाजार वहाँ भी है, जहाँ वह दिखाई नहीं पड़ता है। बाजार के इस छद्म को पकड़ने की चुनौती खासी जटिल है। यह किताब इस छद्म को समझने में महत्त्वपूर्ण मदद करती है। व्यंग्य के लपेटे से कुछ भी बाहर नहीं है, इस कथन की पुष्टि इस किताब में बार-बार होती है।

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