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सफाई कामगार समुदाय

संजीव खुदशाह

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13615
आईएसबीएन :9788183610223

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लेखक ने इन पृष्ठों में सफाई कामगार समुदायों के बीच रहकर अर्जित किए गए अनुभवों का विवरण भी दिया है

सिर पर मैला ढोने की प्रथा मानव सभ्यता की सबसे बड़ी विडम्बनाओं में से एक रही है। सोचने वाले सदा से सोचते रहे हैं कि आखिर ये कैसे हुआ कि कुछ लोगों ने अपने ही जैसे मनुष्यों की गन्दगी को ढोना अपना पेशा बना लिया। इस पुस्तक का प्रस्थान बिन्दु भी यही सवाल है। लेखक संजीव खुदशाह ने इसी सवाल का जवाब हासिल करने के लिए व्यापक अध्ययन किया, विभिन्न वर्गों के लोगों, विचारकों और बुद्धिजीवियों से विचार-विमर्श किया। उनका मानना है कि इस पेशे में काम करने वाले लोग यहाँ की उ$ँची जातियों से ही, खासकर क्षत्रिय एवं ब्राह्मण जातियों से निकले। इसी तरह किसी समय श्रेष्ठ समझी जाने वाली डोम वर्ग की जातियाँ भी इस पेशे में आईं। लेखक ने इन पृष्ठों में सफाई कामगार समुदायों के बीच रहकर अर्जित किए गए अनुभवों का विवरण भी दिया है।

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