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उपन्यास >> सूरज सबका है

सूरज सबका है

विद्यासागर नौटियाल

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :139
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13641
आईएसबीएन :8171193226

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औपन्यासिक भाषिक संरचना की दृष्टि से विद्यासागर नौटियाल का समूचा कथा संसार, विशेषकर सूरज सबका है अद्वितीय, अप्रतिम है

सूरज सबका है ऐतिहासिक कृति से अधिक लोक मानस की कृति है। कथा की शुरुआत 1 8०4- 15 में गोरख्याणी-गढ़वाल पर गोरखों के आक्रमण से होती है जो बीच-बीच में क्‍लेश' की तरह सोनी गाँव की दादी की जीवेष्णा, गढ़वाल की तत्कालीन राजधानी श्रीनगर में रानी कर्णावती के साहस, बुद्धि-चातुर्य, दिल्ली की मुगल सल्लनत के मनसबदार नजावतखाँ की मूर्खतापूर्ण लोलुपता, ईस्ट इंडिया कंपनी की धूर्तता से गुजरते हुए, आजाद भारत के शुरुआती दिनों में परगनाधिकारी देवीदत्त की सहृदयता को लक्षित कुरते हुए सोनी गाँव पर ही समाप्त हो जाती है। औपन्यासिक भाषिक संरचना की दृष्टि से विद्यासागर नौटियाल का समूचा कथा संसार, विशेषकर सूरज सबका है अद्वितीय, अप्रतिम है।

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