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वे बहत्तर घंटे

राजेश माहेश्वरी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13667
आईएसबीएन :9788183616706

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संकलन की ये छोटी-छोटी कहानियाँ बाग के उन छोटे-छोटे फूलों की तरह हैं जो खिलकर बागान को खुशनुमा बना देते हैं और देर तक जिनकी खुशबुएँ हमें तरो-ताजा करती रहती हैं।

राजेश माहेश्वरी की कहानियाँ अपनी बनावट में जितनी भिन्न हैं, उतना ही इन कहानियों का रसास्वादन भिन्न है। संग्रह के नाम को सार्थक करने वाली कहानी 'वे बहत्तर घंटे' मानवीय करुणा और त्याग की भावना से ओतप्रोत है। कहानी में गुजरात में आए भयंकर अकाल का चित्रण मार्मिक है। ऐसी कठिन परिस्थिति में गौ-रक्षा के लिए वहाँ के लोगों की तत्परता न केवल सराहनीय है, बल्कि दिल को छू लेने वाली है। वहीं 'माँ' कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है जो अनाथ बच्चों के लिए कुछ करना चाहते हैं। कहानी 'मित्रता' हमेशा से चली आ रही हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल को कुछ नए ही तरह से पुन: कायम करती है। राजस्थान के परिवेश में बुनी गई कहानी 'पनघट' हमारे समाज की घृणित कर देनी वाली सच्चाई को बिना किसी लाग-लपेट के सीधे शब्दों में प्रस्तुत करती है। अन्य कहानियाँ अपनी सरलता लिए पाठकों तक अपनी बात पहुँचाने में सक्षम हैं। संकलन की ये छोटी-छोटी कहानियाँ बाग के उन छोटे-छोटे फूलों की तरह हैं जो खिलकर बागान को खुशनुमा बना देते हैं और देर तक जिनकी खुशबुएँ हमें तरो-ताजा करती रहती हैं।

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