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कला-संगीत >> अन्दर की आग

अन्दर की आग

शंकर शैलेंद्र

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13709
आईएसबीएन :9788126724932

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शैलेन्द्र के सैकड़ों गीत ऐसे हैं जो आम आदमी के दिलो-दिमाग में बजते रहते हैं

30 अगस्त, 1966 को तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के दिग्गज नेता बाबू जगजीवन राम ने शैलेन्द्र के जन्मदिन पर बधाई सन्देश में कहा था - ‘सन्त रविदास के बाद शैलेन्द्र हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय हरिजन कवि हैं।’
और यह सच भी है कि शैलेन्द्र की भाषा जितनी सरल है उतनी ही सटीक भी। कबीरदास की तरह उनकी रचनाएँ आसानी से मानस पटल पर उतर जाती हैं। जीवन-दर्शन और संवेदनात्मक गहराइयों को सहज ही व्यक्त कर देना शैलेन्द्र की विशेषता रही है। उन्हें शब्दों का जादूगर कहना उचित ही है।
शैलेन्द्र की ज़्यादातर कविताओं में समसामयिक विषय, मज़दूर, निम्न वर्ग की वेदनाएँ, समस्याएँ और पीड़ाएँ तथा समाज के बदलते स्वरूप का भयावह चेहरा दिखता है। गीतकार की हैसियत से उन्हें सिर-आँखों पर बिठाया गया। राजकपूर उन्हें ‘पुश्किन’ कहते थे। उन्हें लगता था कि शैलेन्द्र में रूसी कवि ‘पुश्किन’ की झलक है। उनके गीतों की गहराई और सरलता से मुग्ध होकर रेणु ने उन्हें ‘कविराज’ कहा। और क्यों न कहा जाता, शैलेन्द्र ने खुद को उच्चकोटि के कवि के रूप में प्रतिष्ठित जो किया।
शैलेन्द्र के सैकड़ों गीत ऐसे हैं जो आम आदमी के दिलो-दिमाग में बजते रहते हैं और कहीं न कहीं उनकी ज़िन्दगी को बिम्बित भी करते हैं। यही कारण है कि वे सही मायने में एक जनकवि हैं। शैलेन्द्र के द्वारा लिखी गई सभी कविताएँ इस पुस्तक में संकलित हैं।
पठनीय और संग्रहणीय।

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