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उपन्यास >> बलचनमा

बलचनमा

नागार्जुन

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :151
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13738
आईएसबीएन :9788126702664

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बलचनमा’ की गणना हिंदी के कालजयी उपन्यासों में की जाती है।

‘बलचनमा’ की गणना हिंदी के कालजयी उपन्यासों में की जाती है। छठी दशाब्दी के आरंभिक वर्षों में प्रकाशित होते ही इसकी धूम मच गई और आज तक यह उसी प्रकार सर्वप्रिय है। इसे हिंदी का प्रथम आंचलिक उपन्यास होने का भी गौरव प्राप्त है। दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत का सामंती जीवन भी गरीबों की त्रासदी से भरा पड़ा है, और यह परंपरा अभी समाप्त होने में नहीं आ रही। इस उपन्यास में चौथे दशक के आसपास मिथिला के दरभंगा जिले के जमींदार समाज और उनके अन्यायों की कहानी बड़े मार्मिक ढंग से लिखी गई है। ‘बलचनमा’ दरअसल एक प्रतीक है अत्याचारों से उपजे विद्रोह का जो धनाढ्य समाज के अत्याचारों की कारुणिक कथा कहता है। ‘बलचनमा’ का भाग्य उसे उसी कसाई जमींदार की भैंस चराने के लिए विवश करता है जिसने अपने बगीचे से एक कच्चा आम तोड़कर खा जाने के अपराध में उसके पिता को एक खंभे से बँधवाकर मरवा दिया था। लेकिन वह गाँव छोड़कर शहर भाग जाता है और ‘इंकलाब’, ‘सुराज’ आदि शब्दों का ठीक उच्चारण तक न कर पाने पर भी शोषकों से संघर्ष करने के लिए उठ रहे आंदोलन में शामिल हो जाता है। मनीषी कवि-कथाकार नागार्जुन का यह उपन्यास साहित्य की महत्त्वपूर्ण धरोहर है।

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