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कविता संग्रह >> बोली बात

बोली बात

श्रीप्रकाश शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13776
आईएसबीएन :9788126713232

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‘बोली बात’ युवा कवि श्रीप्रकाश शुक्ल का दूसरा काव्य-संकलन है

‘बोली बात’ युवा कवि श्रीप्रकाश शुक्ल का दूसरा काव्य-संकलन है जिसमें कवि ने न सिर्फ अपनी विकास यात्रा को रेखांकित किया है, बल्कि समाज और उसके जन-जीवन के प्रति अपनी सरोकारों को और भी गहरे ढंग से जताया है। संग्रह में शामिल ‘गाजीपुर’ कविता की ये पंक्तियाँ स्पष्ट रूप से बताती हैं कि कवि अपने आसपास को कितनी संवेदनशीलता के साथ ग्रहण कर रहा है: ‘‘यह एक ऐसा शहर है / जहाँ लोग धीरे-धीरे रहते हैं / और धीरे-धीरे रहने लगते हैं / यहाँ आनेवाला हर व्यक्ति कुछ सहमा-सहमा रहता है / कुछ-कुछ अलग-अलग रहता है / जैसे उमस-भरी गर्मी में दूसरे का स्पर्श / लेकिन धीरे-धीरे ससुराल गई महिला की तरह / जीना सीख लेता है।’’ कवि का पहला संकलन कुछ वर्ष पहले आया था, जिसका नाम था - ‘जहाँ सब शहर नहीं होता’। ‘बोली बात’ पिछले संग्रह के नाम से ध्वनित होने वाली भाव-भूमि और दृष्टि-भंगिमा का ही अगला सोपान है यह कहा जा सकता है। एक नए कवि का दूसरा संग्रह एक तरह से उसके विकास की कसौटी भी होता है और इस संग्रह की कविताओं को देखते हुए यह आश्वस्तिपूर्वक कहा जा सकता है कि इस संग्रह में काफी कुछ ऐसा है जो कवि के रचनात्मक विकास की ओर ध्यान आकृष्ट करता है और कहें तो प्रमाणित भी। ‘प्रभु से प्रार्थना’ कविता का प्रस्तुत अंश आस्था की संरचना पर सवाल उठाते हुए मनुष्य की इयत्ता पर जोर देता है: ‘‘हजार वर्षों के तुम्हारे इतिहास में प्रभु / हमारे हाथ सिर्फ तुम्हारी पूजा में उठे हैं / हमारी करुणा सिर्फ तुम्हारे भय के आश्रित रही है / तुम्हारे रंध्रों में सिर्फ और सिर्फ / या तो दूध व गंगाजल उतरता रहा है / या फिर तुम्हारे मिट्टी के बने पुतलों का खून।’’ इस पूरे संग्रह को एक साथ पढ़ा जाए तो इसकी एक-एक कविता के भीतर से एक ऐसी दुनिया उभरती हुई दिखाई पड़ेगी, जिसे समकालीन विमर्श की भाषा में ‘सबाल्टर्न’ कहा जाता है। संग्रह की पहली कविता हड़परौली - इसका सबसे स्पष्ट और मूर्त्त उदाहरण है। इस प्रवृत्ति को सूचित करनेवाली एक साथ इतनी कविताएँ यहाँ मिल सकती हैं, जो कई बार एक पाठक को रोकती-टोकती-सी लगें। पर एक अच्छी बात यह है कि इसी के चलते अनेक नए देशज शब्द भी यहाँ मिलेंगे, जिन्हें पहली बार कविता की दुनिया की नागरिकता दी गई है। कुल मिलाकर यह एक ऐसा संग्रह है जो अपने खाँटी देसीपन के कारण अलग से पहचाना जाएगा।

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