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कविता संग्रह >> चाँद की वर्तनी

चाँद की वर्तनी

राजेश जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :107
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13790
आईएसबीएन :8126712031

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राजेश जोशी का यह नवीनतम कविता–संग्रह हिन्दी कविता का एक नया शिखर है।

राजेश जोशी का यह नवीनतम कविता–संग्रह हिन्दी कविता का एक नया शिखर है। तीन दशकों से भी अधिक की काव्य–साधना एवं जीवन के लगभग साठ वसंतों की हरीतिमा से दीप्त यह संग्रह अनेक स्वरों का विलक्षण पुंज है। राजेश ने न केवल अपने को बदला है बल्कि अपने को बदलते हुए समस्त समकालीन काव्य में सर्वथा नए घूर्ण उत्पन्न कर दिए हैं। वे सारे गुण और स्वाद जिनके लिए राजेश जोशी जाने और माने जाते हैं यहाँ अपनी पूर्णता एवं सौष्ठव के साथ उपस्थित हैं, साथ ही बहुत कुछ ऐसा भी है जो नितान्त अप्रत्याशित पर आह्लादकारी है और वह है जीवन को उसकी जटिलता में जाकर देखने का उपक्रम, सभी तहों–पर्तों को उलट–पुलट अनुभव की नामिक तक उत्खनन का धैर्य–‘दिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम’। और इसके लिए राजेश तदनुरूप भाषा की खोज भी करते हैं, बनी–बनाई भाषिक आदतों को छोड़ते हुए वह अभिव्यक्ति के खतरे उठाते हैं–‘ताप से भरे शब्दों’ को ढूँढ़ते दूर बीहड़ में जाते हैं और ‘आँसुओं के लिए’ भी ढूँढ़ लाते हैं वैसे ही ‘पारदर्शी शब्द’। राजेश की कविता हमारे समय का ऐसा संघनित दस्तावेज है कि केवल उसके आधार पर हम समकालीन भारत का एक दृश्य–लेख बना सकते हैं। इतने तात्कालिक ब्यौरे हैं यहाँ, इतने प्रसंग, पात्र और राजनीतिक–सामाजिक उद्वेलन। साथ ही उनकी कविता जीवन के उन तन्तुओं की खोज करती है जहाँ उन उद्वेलनों का कम्प सबसे तीव्र है, और उन लोगों का यशोगान करती है जो निरन्तर संघर्ष करते हुए जीवन को बदलने का ताब रखते हैं। उनकी कविता साहस के साथ सत्ता के सभी पायदानों पर वार करती है, एक विराट सत्ता जो अर्थव्यवस्था से लेकर हमारी रसोई तक व्याप्त है। नागार्जुन और धूमिल के बाद सत्ता के तिलिस्म को उघाड़ने वाले सर्वाधिक सशक्त कवि राजेशी जोशी हैं। आख्यान, कथोपकथन, लोक–कथाओं के स्वप्न–वृत्तांत, जातीय मिथक, अतियथार्थ के ख़म, सपाटबयानी, शब्दों के खेल और कल्पना–क्रीड़ा, फंतासी सब कुछ मिलकर एक नया रसायन बनाते हैं जो अन्यत्र दुलर्भ है। राजेश की कविता अब भाषा के नए उपकरणों एवं आयुधों का व्यवहार करती है तथा कविता को वहाँ ले जाती है जहाँ भाषा ‘अर्थ से अधिक अभिप्रायों में निवास करती है’। यह ठोस जगत की, ठोस जीवन की कविता है उर्फ चाँद की वर्तनी नीले नभ पर।

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