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हिंदी आलोचना

विश्वनाथ त्रिपाठी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13887
आईएसबीएन :9788126707478

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कृति की राह से गुजरना उचित है, लेकिन कृति को देखने की दृष्टि प्राप्त करके।

हर प्रकार के बाद से मुक्त होकर कृति को परखने का आग्रह स्वयं एक बल है और उस विचार धरा से संबद्ध है जो विभिन्न आंदोलनों और पक्षों में अपने को किसी से प्रतिबद्ध नहीं करती। हमारी रुचि और हमारी सहृदयता भी इतनी स्वतंत्र और स्वच्छंद नहीं है ; वह हमारे अनुभवों से बद्ध है। हमारे अनुभव हमारी परिस्थतियों से बद्ध हैं। इस कारण आलोचक यदि किसी कृति की व्याख्या, देश-काल, रचनाकार की स्थिति, उसके सामाजिक विचार आदि की दृष्टि से करते हैं तो उससे रचना और रचनाकार को समझने में सहायता मिलती है। कृति की राह से गुजरना उचित है, लेकिन कृति को देखने की दृष्टि प्राप्त करके।

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