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ईश्वर की अध्यक्षता में

लीलाधर जगूड़ी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13909
आईएसबीएन :9788171788347

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साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित अनुभव के आकाश में चाँद के बाद लीलाधर जगूड़ी का नया कविता-संग्रह ईश्वर की अध्यक्षता में जीवन और अनुभव के अप्रत्याशित विस्तारों में जाने की एक उत्कट कोशिश है।

साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित अनुभव के आकाश में चाँद के बाद लीलाधर जगूड़ी का नया कविता-संग्रह ईश्वर की अध्यक्षता में जीवन और अनुभव के अप्रत्याशित विस्तारों में जाने की एक उत्कट कोशिश है। पिछले चार दशकों से अपने काव्य-वैविध्य, भाषिक प्रयोगशीलता के कारण जगूड़ी की कविता हमेशा अपने समय में उपस्थित रही है और उसमें समकालीनता का इतिहास दर्ज होता दिखता है। समय और समकाल, भौतिक और आधिभौतिक, प्रकृति और बाज़ार, मिथक और टेक्नोलाजी, दृश्य और अदृश्य, पृथ्वी और उसमें मौजूद कीड़े तक का अस्तित्व उनकी कविता में परस्पर आते-जाते, हस्तक्षेप करते, खलबली मचाते, उलट-पुलट करते एक ऐसे विस्मयकारी लोक की रचना करते हैं जिसे देखकर पहला आश्चर्य तो यही होता है कि कहाँ कितने स्तरों पर कैसा जीवन संभव है, उसमें कितने ही आयाम हैं और कभी-कभी तो एक ही जीवन कई नए-नए रूपों की, नई-नई अभिव्यक्तियों की माँग करता दिखता है। अनेक बार एक अनुभव एक से अधिक अनुभवों की शक्ल में आता है और जगूड़ी की कोशिशें यह बतलाती हैं कि अनुभवों की ही तरह भाषा भी एक अनंत उपस्थिति है। इसीलिए ईश्वर की अध्यक्षता में ही ईश्वर विहीनता तक सबकुछ घटित हो रहा है: यहाँ अकल्पनीय मोड़ हैं, अनजानी उलझनें हैं, अछूती आकस्मिकताएँ हैं। कवि का ईश्वर हालाँकि एक प्रश्नचिह्न की तरह है, पर वह हजारों-लाखों वर्ष पुरानी रचनाशीलता से लेकर कल आने वाले प्रयत्नों तक फैला हुआ है। यह सब कहीं अधिक-से-अधिक भाषा और कहीं कम-से-कम भाषा में अभिव्यक्त होता है। दरअसल ये उस एक बड़े उलटफेर की कविताएँ हैं जो हमारे समाज में हर क्षण हो रहा है और कविता जिसे कभी-कभी पकड़ कर नए अर्थों में प्रकाशित कर देती है। साठ के बाद की हिंदी कविता में धूमिल के बाद जगूड़ी की रचनाशीलता ने एक नया प्रस्थान और परिवर्तन का बिंदु बनाया था। उनकी कविता आधुनिक समय की जटिलता के बीचोबीच परंपरा की अनुगूँजों, स्मृतियों और स्वप्नों को भी संभव करती चलती है। ईश्वर की अध्यक्षता में लीलाधर जगूड़ी का नौवाँ कविता-संग्रह है जिसे पढ़ते हुए उनके पाठक जीवन की एक नई विपुलता का इतिवृत्त पाने के साथ-साथ आधुनिक बाजार और वैश्वीकरण से पैदा हुए अवरोध, अनुरोध और विरोध की प्रामाणिक आवाज भी सुन पाएँगे।

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