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जंगल

अप्टान सिंक्लेयर

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :358
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13936
आईएसबीएन :0

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अप्टन सिंक्लेयर की सर्वाधिक चर्चित कृति ‘जंगल’ ने विगत सदी के पहले दशक में पूरे अमेरिका में एक आन्दोलन-सा खड़ा कर दिया था और अमेरिकी सत्ता को हिला डाला था।

अप्टन सिंक्लेयर (1878-1968) उन महान यथार्थवादी लेखकों की सुदीर्घ परम्परा की एक कड़ी थे जिन्होंने विश्व-साहित्य सम्पदा की श्रीवृद्धि करते हुए अपने-अपने युग का इतिहास प्रस्तुत किया। आज के नवउदारवादी दौर में जिन देशों में एक बार फिर उजरती गुलामी के नये-नये नर्क रचे जा रहे हैं, वहाँ के लिए सिंक्लेयर और जंगल जैसी उनकी कृतियाँ एक बार फिर प्रासंगिक हो गयी हैं। अप्टन सिंक्लेयर की सर्वाधिक चर्चित कृति ‘जंगल’ ने विगत सदी के पहले दशक में पूरे अमेरिका में एक आन्दोलन-सा खड़ा कर दिया था और अमेरिकी सत्ता को हिला डाला था। इस उपन्यास के प्रकाशन को अमेरिकी मजदूर आन्दोलन के इतिहास की एक घटना माना जाता है। आज यह जानकर किसी को आश्चर्य होगा कि शिकागो स्थित मांस की पैकिंग करनेवाले उद्योगों और उनमें काम करनेवाले मजदूरों की नारकीय स्थिति का बयान करनेवाले इस उपन्यास ने थियोडोर रूज़वेल्ट की सरकार को ‘प्योर फूड एण्ड ड्रग एक्ट’ और ‘मीट इंस्पेक्शन एक्ट’ नामक दो कानून बनाने के लिए बाध्य कर दिया था। अनेक कठिनाइयों के बाद 1906 में पुस्तकाकार प्रकाशित होते ही दि जंगल की डेढ़ लाख से भी अधिक प्रतियाँ हाथोंहाथ बिक गईं। अगले कुछ ही वर्षों के भीतर सत्रह भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ और लगभग पूरी दुनिया में इसे बेस्टसेलर का दर्जा मिला। ‘दि न्यूयार्क इवनिंग वर्ल्ड’ ने लिखा था: ‘‘बायरन को रातोंरात मिली प्रसिद्धि के बाद से एक किताब से एक ही दिन में वैसी विश्वव्यापी ख्याति अर्जित करने का कोई उदाहरण नहीं मिलता जैसी अप्टन सिंक्लेयर को मिली है।’’ ‘दि जंगल’ पुस्तक ने पूरे अमेरिकी समाज को झकझोर दिया। लगभग आधी सदी पहले प्रकाशित हैरियट बीचर स्टोव के उपन्यास ‘अंकल टाम्स केबिन’ (1852) के बाद यह पहली पुस्तक थी जिसने इतना गहरा सामाजिक प्रभाव डाला था। इसने मजदूरों की भारी आबादी को टेªड यूनियन आन्दोलन और समाजवादी आन्दोलन में भागीदारी के लिए प्रेरित किया और अमेरिकी मजदूर आन्दोलन के इतिहास की एक घटना बन गया। ‘दि जंगल’ की कहानी की जीवन्तता के पीछे शिकागो के मांस पैकिंग कारखानों के मजदूरों के जीवन-स्थितियों के गहन एवं आधिकारिक अध्ययन के साथ ही इस बात की भी अहम भूमिका थी कि अप्टन सिंक्लेयर ने स्वयं अपने परिवार को बचपन में गरीबी, भूख, बीमारी और अपमान की जिस यंत्रणा में घुटते देखा था, उसकी तमाम स्मृतियों को उन्होंने घनीभूत और सान्द्र बनाकर इस उपन्यास में रख दिया था। ‘दि जंगल’ की व्यापक लोकप्रियता और प्रचार के बाद न केवल अमेरिका में, बल्कि यूरोप में भी बुर्जुआ मीडिया और आलोचकों ने इस उपन्यास की चर्चा जोर-शोर से इस रूप में करनी शुरू की, मानो इस उपन्यास का मूल उद्देश्य शिकागो स्टाकयार्ड्स में व्याप्त गन्दगी और अस्वास्थ्यकर स्थितियों को उजागर करना हो। लेकिन अनेक लेखकों-आलोचकों और स्वयं अप्टन सिंक्लेयर ने एकाधिक बार यह स्पष्ट किया कि उपन्यास की मूल थीम उजरती गुलामी को कठघरे में खड़ा करना है। सिंक्लेयर ने स्पष्ट बताया कि उपन्यास का उद्देश्य औद्योगिक पूँजीवाद में मेहनतकश स्त्रियों-पुरुषों की अमानवीय जीवन-स्थितियों का जीवन्त दस्तावेज प्रस्तुत करना और यह बताना था कि समाजवाद ही इस समस्या का एकमात्र समाधान हो सकता है। उपन्यास का सादा, रुखड़ा, निर्मम गद्य वस्तुतः उस किस्म के मानव जीवन के बयान के सर्वथा अनुरूप है जो सिंक्लेयर ने शिकागो के स्टॉकयार्डों में देखा: जहाँ काम करनेवाले औरत-मर्द उन मूक पशुओं जैसे ही हो गये थे जिन्हें कसाईबाड़े में वे जिबह किया करते थे।

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