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कविता संग्रह >> खुल गया है द्वार एक

खुल गया है द्वार एक

अशोक वाजपेयी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13990
आईएसबीएन :9788126726219

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यह चयन हिंदी के बृहत्तर पाठक-समुदाय को पसंद आएगा, क्योंकि यह उसी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

अशोक वाजपेयी को पहले 'देह और गेह का कवि' कहा गया था। यह कहना निराधार नहीं था, लेकिन शनै:-शनै: उनकी दैहिक और गैहिक भावना का ऐसा विस्तार हुआ कि उसमें प्रकृति ही नहीं, संपूर्ण पृथ्वी सिमट आई। वे नई कविता के आखिरी दौर के कवि हैं। उसके बाद से हिंदी कविता में कई प्रकार के बदलाव हुए, पर उन्होंने अपना मार्ग कभी नहीं बदला। कारण यह कि उनकी कविता में स्वयं ऐसे आयाम प्रकट होते गए कि उन्हें कभी उसकी जरूरत ही नहीं पड़ी। 'शहर अब भी संभावना है' से लेकर 'कहीं कोई दरवाज़ा' तक की काव्य-यात्रा एक लंबी काव्य-यात्रा है, जिसमें कवि ने कई मंजिलें पार की हैं। आज उनकी कविता के बारे में दिनकर के शब्दों में यही कहा जा सकता है कि 'वर्षा का मौसम गया, बाढ़ भी साथ गई, जो बचा आज वह स्वच्छ नीर का सोंता है...'। अशोकजी हमेशा ऊँचे सरकारी पदों पर रहे, लेकिन यह प्रीतिकर आश्चर्य की बात है कि उनकी कविता का नायक अभिजन न होकर साधारण जन है। इस साधारण जन को वे नजदीक से जानते हैं और उसकी समस्त पीड़ाओं के साथ उसकी इतिहास-निर्मात्री शक्ति से भी परिचित हैं। स्वभावत: उनमें नकली क्रांति के लिए कोई बेचैनी नहीं है, जैसी कथित प्रगतिशीलों और जनवादियों में देखी जाती है। उनकी तरह वे समाज को साहित्य के ऊपर नहीं रखते, बल्कि साहित्य के अनुशासन में ही समाज और इसके अन्य पक्षों को स्वीकार करते हैं। साधारण जन का शत्रु कौन है? यह कवि से छिपा नहीं है, इसलिए बिना कविता को छोड़े वह उससे उसे आगाह करता है। आशा है, यह चयन हिंदी के बृहत्तर पाठक-समुदाय को पसंद आएगा, क्योंकि यह उसी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह उसे समकालीन हिंदी कविता का एक ऐसा दृश्य भी दिखलाएगा, जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।

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