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प्रतिनिधि कविताएं: गोपाल सिंह नेपाली

गोपाल सिंह नेपाली

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 14192
आईएसबीएन :9788126717743

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उनकी रचनाओं में रूप का आकर्षण भी है और मन की विह्वलता भी, समर्पण की भावना भी है और मिलन की कामना भी, प्रतीक्षा की पीड़ा भी है और स्मृतियों का दर्द भी।

गोपाल सिंह ‘नेपाली’ उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवियों में कई कारणों से विशिष्ट हैं। उनमें प्रकृति के प्रति सहज और स्वाभाविक अनुराग है, देश के प्रति सच्ची श्रद्धा है, मनुष्य के प्रति सच्चा प्रेम है और सौन्दर्य के प्रति सहज आकर्षण है। उनकी काव्य-संवेदना के मूल में प्रेम और प्रकृति है। ऐसा नहीं है कि ‘नेपाली’ के प्रेम में रूप का आकर्षण नहीं है। उनकी रचनाओं में रूप का आकर्षण भी है और मन की विह्वलता भी, समर्पण की भावना भी है और मिलन की कामना भी, प्रतीक्षा की पीड़ा भी है और स्मृतियों का दर्द भी। ‘नेपाली’ की राष्ट्रीय चेतना भी अत्यन्त प्रखर है। वे देश को दासता से मुक्त कराने के लिए रचनात्मक पहल करने वाले कवि ही नहीं हैं, राष्ट्र के संकट की घड़ी में ‘वन मैन आर्मी’ की तरह पूरे देश को सजग करने वाले और दुश्मनों को चुनौती देने वाले कवि भी हैं। ‘नेपाली’ एक शोषणमुक्त समतामूलक समाज की स्थापना के पक्षधर कवि हैं - वे आश्वस्त हैं कि समतामूलक समाज का निर्माण होगा। मनुष्य रूढ़ियों से मुक्त होकर विकास पथ पर अग्रसर होगा। प्रेम और बन्धुत्व विकसित होंगे और मनुष्य सामूहिक विकास की दिशा में अग्रसर होगा - ‘‘सामाजिक पापों के सिर पर चढ़कर बोलेगा अब खतरा बोलेगा पतितों-दलितों के गरम लहू का कतरा-कतरा होंगे भस्म अग्नि में जलकर धरम-करम और पोथी-पत्रा और पुतेगा व्यक्तिवाद के चिकने चेहरे पर अलकतरा सड़ी-गली प्राचीन रुढ़ि के भवन गिरेंगे, दुर्ग ढहेंगे युग-प्रवाह पर कटे वृक्ष से दुनिया भर के ढोंग बहेंगे पतित-दलित मस्तक ऊँचाकर संघर्षों की कथा कहेंगे और मनुज के लिए मनुज के द्वार खुले के खुले रहेंगे।’’

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